________________
MPA
Vc
.
2
5GSSSBEESES
अर्हम्। नमः शास्त्रविशारद-जैनाचार्य श्रीविजयधर्मसूरिभ्यः ।
धर्मशिक्षा. प्रणम्य परमात्मानं धर्माचार्यान्गुरूंस्तथा । भव्यानामुपकाराय धर्मशिक्षा विधीयते ॥१॥
यह तो सुविदित ही है कि समस्त जीवयोनिमें मनुष्यत्व जाति, परमपदमाप्तिका परम मार्ग है । समस्तप्रकारसे विज्ञान सामग्री वा धर्मसामग्री मनुष्यही को प्राप्त होसकती है। अतएव शास्त्रकारों ने मोक्षप्राप्तिका परम साधनभूत मनुष्य जन्मको देवत्वसे भी अधिक श्रेष्ठ बताया है । क्योंकि देवलोगोंको स्वर्गसुख-रमणमें आसक्ति होने से तपश्चरणादिका उदय नहीं होता है, और विना तपश्चरणादि, समस्त कर्मक्षय स्वरूप मोक्ष नहीं मिलसकता । इस लिये इस मनुष्यत्व जातिको प्राप्त करके बुद्धिमान् विवेकी पुरुषोंको धर्मका आदर करना परमावश्यक है । लेकिन अफसोस है कि आजकल नवीन धर्मोंका प्रचार उत्पन्न होता हुआ बहुत दीख पडता है । परस्पर विरोधि धर्मोंकी धारा, अल्प
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com