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पिष्टकादिक गरथि करि लेबा लागउ, तिसइ श्रीद्धरण पणि देवनइ संयोगि तिहां आव्यउ। ते श्रावक जाणी जुहार जुहार करी आपणइ गृहांगणि तेडि अंगोहलि करावी, भली पट्टकूल तणी धोवति बेवइ जणा पहिरी देहरई देवपूजा करिवा नीकल्या छह । तिसइ उद्धरण तणी कलत्र पणि मला अपूर्व वस्त्र पहिरी ओढी हाथि कचुलडी लेइ नीकली। कचुलडी माहे एका प्रदेशि कुसुम केसर..."एका प्रदेशिपांच सात एकर प्रदेशि बि च्यार नवा सखर सुरंग चुनड़ी घाती कचु. लडी लेइ उद्धरण तणी कलत्र पणि देहरा भणी जायह छह,......देखि रामदेव साहनह मनि विस्मय अपनउ, ए किस्य उ स्वरूप ? देहरइ जाता घाटड़ी अनइ चूडा काह ? मनि सांसइ उपनइ हुतइ कोइ एक पछय उ एहडी घाटड़ी काइ देहरइ लेंइ जायइ छइ ? तिणि कह्यु-ए श्री उद्धरणनी कलत्र महा पुण्यात्मा सर्वज्ञतणा शासननइ विषइ चतुर, देहरह जाता कोइ श्राविका चूडा पखइ देहग जाता आवतां देखइ दुबली दोहली, तेहनइ चूड़ा पहिरावइह चूनडी पखइ मिलइ, तेहनइ चूनडी ओढावइ, साडी दिया, तिणि कारणि ए भाग्यवंत श्राविका सहु प्रकारे दीन दुस्थित तणइ कारणि आधार दियइ इसी विवेकवंत श्राविका छइ। इसउ जाणी श्रीउद्धरण तणा घरनउ आचार देखी मनमाहि हर्ष करी हर्षित थयउ, मनि मान्यउ-जे
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