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परिशिष्ट [क] एकदा प्रस्तावि श्रीजिनपतिसूरि भगवंत श्रीअजय. मेरु नगरि संयम प्रतिपालता रहह छह, भला व्याख्यान भला ध्यान मला ज्ञान दान, ते विस्तारता सुखह सुखइ अवस्थान करह छह । इम करतां जिवारइ श्रावक आची गुरां आगइ बइसइ, देव गुरु संघ श्रावक संबंधिनी जिवा. रइ वात नीसरह, तिवारद श्रीजिनपतिमूरि श्रावक गुण ग्रहण प्रस्तावि कहइ-जे मरुस्थली देसि श्रीखेड नगरि मुहतो श्रीउद्धरणु घणुं भलउ छइ, अत्यंत देवगुरु साहमीभक्त, धर्म विषइ आसक्त, देवगुरु आज्ञा प्रतिपालवा विषइ सावधान, कृपासागर, दयावत्सल, विनय विवेक विचार विष विदुर छइ । इसी परि श्रीजिनपतिसरि उद्धरण छाजहड तणी प्रशंसा करइ । श्रावक गुण वर्णन, करतां देखी, अनइ श्रीरामदेव साह पणि महद्धिक अजय. मेरु वसइ छइ देव गुरु विषइ भक्त, हिव श्रीरामदेव साह श्रीजिनपतिसूरि गुरु उद्धरण पहित्री तणि गुण प्रशंसा देखि मनइ चिन्तव्य उ-एक बार परीक्षा करी जोवू । गुरु घणउ वर्णवइ छइ, मरुस्थलीमांहि ते उद्धरण किसउ छइ ?। इसउ चितवी घड़ीया जोयणी सांद पलाणी पाधरउ खूमउकउ वेस करी तिहां थकी पाली श्रीखेडि नगार आव्यउ। तिसइ उद्धरण तणा वाणउ तणइ हाटि ऊतरिय3 छ। तेह कन्दा भोजन सामग्री घृत तंदुल
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