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श्रीजिनपतिसूरि वार्ता कही ते सत्य, संदेह भाग्यउ । अनेराइ घर तणा मनुष्य देव गुरु विषा भक्तिमंत, सप्तक्षेत्र, दस क्षेत्रह आपणउ वित्त वावता देखी श्रीरामदेव साहु उद्धरण वहित्री तणइ पगइ लागी आपणपाउ जणाव्यउ, ज हुं ताहरी परीक्षा करवा भणी आध्यउ हुँतउ,श्रीजिनपतिसूरि ताहरी वर्णना करइ, मइ जाणीयउ-ते किमाउ छह ? तिणि कारणि हुं अत्र आव्यउ, तउ सांपत आज ताहरउ घर तणउ आचार दीठउ, मन संतोष पहठ उ, संशय दुरि नाठउ, जिनशामननइ विषद इसा पुरुषरत्न हुवा तउ ए वार्ता जुगतीहीजि छा, तउ धन्य अनइ ते श्रीजिनपतिमूरि पणि चन्य, हु पिण धन्य, जे इसा साहमी तणउ मुख दीठउ । इसी परि आपण पउ धन्य मानतउ हुंत उ भली परि धीउद्धरण मोकलावी रामदेव साहु श्रीअजयमेरि आपण इ नगरि आवी श्रीजिनपति सूरि वांदी नमस्कार करी वमाव्या, आपणउ खेडि नगरि गयां तणउ वृत्तांत कही वमत खामणा कीधा । इसा श्रीजिनपतिसूरि हुआ।
अथ उद्धरण तणउ वृत्तात लिखियइ छइ, ऊद्धरण आगइ कोमल हुंनउ, पछइ श्रीउद्धरणि खेड़ि नगरि पहा उत्तुंग तोरण प्रासाद कराव्यउ, संपूर्ण प्रासाद नीपनउ. तिवार प्रतिष्ठा तणउ महतं गिणाव्यउ, कोमल आचार्य प्रतिष्ठा करिवा मणि तेड्या, ते आचार्य अनेरह स्थानकि प्रतिष्ठा करिया पहुंता, तिवारह उद्धरण सचिंत थयउ,
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