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________________ २७ निर्वेदी जब होत है, आतम क्षायिक भाव । पूरण ब्रह्म स्वरूप ही, प्रगटे आतम भाव ॥२॥ जबलग वेदी जीवहै, तबलग शुभ व्यवहार । वाड सहित किरिया करे, ब्रह्मचारी अनगार ॥३॥ यह उपदेश ही खास है, षट पंचम गुणठाण । साधु श्रावक सर्वसे, देशसे जिनवर वाण ॥४॥ जो चाहे शुभ भावसे, निज आतम कल्यान । तीन सुधारे प्रेमसे, खान पान पहिरान ॥ ५ ॥ देश-त्रिताल-लावणी । (कर पकर प्रीतयुत बोलत नार सयानी-यह चाल) ब्रह्मचारी तीरथ नाथ नमो भवि प्रानी। आतम हितखानि मानो जिनेश्वर वानी ॥ अं० ॥ जो होये अरिहंत देव तीरथके स्वामी, पूरण ब्रह्मचारी जानो नहीं कोई खामी । तोभी श्रीनेमिनाथ बाल ब्रह्मचारी, जिनशासनमें अतिमान पावे जयकारी। व्रतब्रह्मचर्य परभाव वदे महाज्ञानी ॥ आतम० १॥ नरनारी शुभ आचार सभी अधिकारी, किंतु व्रत लेवे धार वही ब्रह्मचारी । आचार विचार आहार विहार ये चारी, हैं मर्यादित जस धन्य जगत नरनारी । वोही उत्तमकुलवंश उत्तम खानदानी ॥ आ० २॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034794
Book TitleCharitra Puja athva Bramhacharya Vrat Puja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayvallabhsuri
PublisherBhogilal Tarachand Zaveri
Publication Year1925
Total Pages50
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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