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जिम धोयो धरणी धन्यो, हान्यो रत्न कुंभार । शील रत्न मुनि हारते, करते जो भंगार ॥ ५॥
श्याम कल्याण। कीजे भवि पूजन प्रभु ब्रह्मचारी । अंचली। पूरण ब्रह्मचारी सब होवे, तीर्थकर पदधारी ॥कीजे०॥१॥ ऋषि मुनि तापस यति संन्यासी, होवत सब ब्रह्मचारी ॥२॥ वेश पृथक गृहीसे साधारण, ब्रह्मचर्य हितकारी ॥३॥ देह वसन आभूषण शोभा, संजोगी नरनारी ॥४॥ ब्रह्मचारीको योग्य नहीं है, फिरना बन श्रृंगारी ॥५॥ काम दीपावन भूषण दूषण, अंग विभूषण टारी ॥ ६॥ नाटक चेटक रास सिनेमा, देखे नहीं ब्रह्मचारी ॥७॥ - सैर सपाटा रौनक ठौनक, त्यागे धन्य सदाचारी ॥८॥ आतम लक्ष्मी ब्रह्म अनुपम, वल्लभ हर्ष अपारी ॥की०९॥
दोहरा। पांच नियंठा आगमे, जिनगणधर फरमान । अंतिम दो निर्वेद हैं, तीन सवेद पिछान ॥ १॥ १ कोई एक कुंभार माटी खोद रहाथा, दैवयोग उसको मिट्टीमेंसे एक रत्न मिलगया, उसको पानीसे साफ कर चमकीला दमकीला बना जमीनपर रखकर उसे देख देखकर खुश होताथा । इतनेमें चीलने आ झपट मारी, . चील उसे मांसका टुकडा समझती थी इसलिये लेकर चलती हुई और कुंभकार रोताही रहगया! इसी तरह कई जन्मोंमें मिट्टी खोदनके समान जन्ममरण करते हुए इस जीवको उत्तम मनुष्यजन्मरूप रत्नोंकी खानिमेसे सर्वोत्तम ब्रह्मचर्यरूप रन मिलाहै । यदि ब्रह्मचारी अपने आपको चमकीले दमकीले शृंगारसे सजा रखेगा तो संभव है स्त्रीरूप चील इसके ब्रह्मचर्यरूप छालको खोस लेवेगी! बस फिर क्या ? प्राचर्यसे भ्रष्ट हुआ हुआ दुर्गतिका अधिकारी हो जायगा ! इसलिये ब्रह्मचारीको शृंगारी न बनना चाहिये।
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