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________________ दोहरा। शील विनय संयम खिमा, तप गुप्ती निर्वान । आराधक सबका कहा, ब्रह्मचारी भगवान ॥१॥ सुरतरु सम ब्रह्म मानिये, जिनशासन वन सार । वनपालक जिन देव हैं, करुणारस भंडार ॥२॥ समकित दृढतर मूल है, व्रत शाखा विस्तार । सुर सुख कुसुम वखानिये, फल शिव सुख निरधार ॥३॥ वन पालक जिनदेवने, तरुवर रक्षा काज । दृढतर नव वाडें करी, जय जय श्री जिनराज ॥४॥ उपकारी जगजीवके, श्री जिन दीनदयाल । शुभ भावें भवि पूजिये, होवे मंगल माल ॥५॥ आसाउरी-कहरवा । (करूं मैं क्या तुझ बिन बाग बहार-यह चाल) भविकजन प्रभु पूजन सुखकार भविक० ॥ अं०॥ द्रव्य भावसे प्रभु पूजन है, भाखे जिन गणधार । अष्ट द्रव्यसे द्रव्य भाव प्रभु, आज्ञा दिलमें धार ॥भ०प्र०॥१॥ स्त्री पशु पंडक सेवित थानक, सेवे नहीं अनगार। सोलवें उत्तराध्ययन सूत्रमें, ब्रह्मसमाधि विचार ॥भ०२॥ जिम कुर्कट मूषक अरु मोरा, मार्जारी संगकार । सहे दुःख तिम व्रतधारी संग, नारी होत खुवार ॥भ० ३॥ १ सुरतरु-कल्पवृक्ष । २ कुसुम-फूल ।३ पंडक-नपुंसक-हीजडा । ४ कुकंट-मुर्गा-कूकडा। ५ मूषक-चूहा उंदर । ६ मार्जारी-बिल्ली-बिलाडी। . खुवार-नाश। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034794
Book TitleCharitra Puja athva Bramhacharya Vrat Puja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayvallabhsuri
PublisherBhogilal Tarachand Zaveri
Publication Year1925
Total Pages50
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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