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________________ आतम रमणी -मराठी यह चार चरना चारित्र मानिये, विध विध कर्म समाज । इहभव परभवके किये, संचय अपचय काज ॥ ३ ॥ कर्म अनिंदित आदरें, निंदित किरिया त्याग । पाप योगका त्यागना, चरण कहे महाभाग ॥४॥ पाप प्रवृत्ति त्यागिये, धर्म प्रवृत्ति लाग । निजगुण आतम रमणता, पुदगलरूप विराग ॥ ५॥ लावणी-मराठी। (ऋषभ जिनंद विमल गिरि मंडन-यह चाल) ब्रह्मचर्य आतमगुण उज्वल, निर्मल ध्यान धुरा कहिये । जस तेज प्रतापें, परमपद परमातम शिव सुख लहिये ॥१॥ होये सिद्ध अनंत अनंते, होवेंगे चित्त दृढ गहिये। ब्रह्मचारी पूरण, सभी नहीं घरबारी कोइ शिव लइये ॥२॥ और व्रतोंमें स्यादवाद भी, जिनवर वचन अनुसरिये । नहीं ब्रह्मचर्यमें, यही जिन शासन रीति मन धरिये ॥३॥ अन्य व्रतोंमें जो व्रत खंडित, होवे सो खंडित सहिये। इक ब्रह्मचर्यके, हुये खंडित पांचों खंडित कहिये ॥ ४ ॥ अब्रह्म सेवनसे मोहबंधन, दर्शन चारित्र दो लइये। संयंती व्रत भंगे, जीव दुर्लभ बोधि जिन वच कहिये ॥५॥ आतम लक्ष्मी साधन पूरण, ब्रह्मचर्य व्रत दृढ गहिये । मन वच कायासे, हर्ष वल्लभ ब्रह्मचारी जिन महिये ॥६॥ १ समाज-समूह । २ संचय-जमा । ३ अपचय काज निकालने वास्ते । ४ "नवि किंचि अणुचायं पडिसिद्धं वावि जिणवरिंदेहिं । मोत्तुं मेहुणमेगं, न जं विणा रागदोसेहिं ।" [प्रश्नव्या वृत्तौ] तथा आर्हतानां नैकान्ततः किञ्चित्प्रतिषिद्धमभ्युपगतं वा मैथुनमेकं विहाय [भाचा. वृ.] ५ मैथुन । ६ साध्वी । ७ पूजिये। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034794
Book TitleCharitra Puja athva Bramhacharya Vrat Puja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayvallabhsuri
PublisherBhogilal Tarachand Zaveri
Publication Year1925
Total Pages50
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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