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________________ पगोको, अपस्मार व्याधिले पीडित उस-रोगरहित शरीरको पराक्रमहीन महापराक्रमको और धनका अर्थी धनको सुंदर स्त्रीका अर्थी सुन्दर स्त्रीको, पुत्रका अर्थी पुत्र और पौत्रको, राज्यसे भ्रष्ट हुवा महाराज्यको, पदस भ्रष्ट हुवा उत्तम पदको, जयकी इच्छावाला जयकों, विद्याहीन, सरस्वतीको, पाता है तथा भूतवैताल-डाकिनी शाकिनी प्रमुख भाग जाते है और सब कुग्रहो भी शान्त होते है. ५१ से ५४ ।। हे राजन् ! यह मूर्तिका ज्यादा वर्णन करनेसे क्या! इस कलियुगमें यह मूर्ति चिंतामणिरत्नके माफिक प्रत्यक्ष आना इष्टकार्यको सिद्ध करने वाली है. ५६ नागराज धरणेद्रका में सेवक (देव) हुं. और उसका हुकमसे इहां रहकर भक्तिसें में आप भगवानकी मूर्तिकुं पूजता हुं. ५६ इसतरह प्रभुका महात्म्यकु सुनकर भक्ति उल्लसित मनवाला राजानें वह देवके पास, प्रत्यक्ष चमत्कारिणी मूर्तिकी याचना कीया. ५७ तब देव बोल्या. हे राजन् ! सुण. धन्यधान्यादि जो कुच्छ तु मांगेगा वह तेरी इच्छानुसार तेरेको में देउगा. लेकिन मूर्ति कभोभी नही देऊ. ५८ एसे अनेक प्रकारके वचनोसें देवनें बहुत समजाया, लेकिन मूर्तिको गृहण करनेकी इच्छावाला वह राजाए पारणा नहीकीया. ५९ चाहे प्राण जाय तबभी (मूर्तिविना) नहिजाना एसा दृढ नि. श्वयवाला राजानें वहां अन्नपाणी लीयाविना सातदिन निकाला.६० Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034788
Book TitleChamatkari Savchuri Stotra Sangraha tatha Vankchuliya Sutra Saransh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshantivijay
PublisherHirachand Kakalbhai Shah
Publication Year1923
Total Pages100
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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