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________________ रख, नमस्कार करके बोला, हे स्वामिन् ! गृहचैत्य (मूर्ति) पाताल लंकामें भुल गया-रह गया है. २३ ___ यह वचन सुनकर राजानें वहांही रह्या हुवा बालु और गोबर लेकर श्रीपार्श्वनाथजीकी प्रतिमा ( अपने हाथसें) बनाइ. (और)२४ नमस्कार (नवकार) महामंत्रोसें प्रतिष्ठित की. पीछे पूजन करके आशातनाका भय से पाणीवाला कूपमें पधरा दीनी. २५ . वह कूपमें पडतेही उसी वखत कूपमें रखा हुवा देवनें उसमूतिको पुण्यसमूहकी माफक ग्रहण करके वज्रके समान करदी. २६. खरदूषण राजाभी रसोइ जीमके वहांसें रवाने हुवा और रावणका कार्य करके शीघ्रही पीछा कानगरीमें गया. २७. __उस वखतसें लेकर बहुत कालतक वह देवनें उसी कूपमें भावि जिनेश्वरका बिंबको भक्तिसें पूज्या. २४ . शास्त्रोमें बताया हुवा साढीपञ्चीस आर्यदेशोमें वैराटनगरसें यह देश मत्स्यदेश मालुम होता है. २९ . वह देश उस वखतमें विंगोलि नामसे प्रसिद्ध था उस्के पीछे वह देश वैराटनगरसेंही वैराट हुवा. और अभी तो 'वराड ' इस नामसें प्रसिद्ध है. ३० वह वराड देशस्थ एलचपुर पत्तनमें प्रजाकें नेत्ररूप कैरवोकों आहलाद देने में चंद्रकेसमान चंद्रवंशी श्रीपालनामका राजा था. ३१ श्रीपाल नाम उस्का मातापिताका दिया हुवाथा और युवाचस्थामें अच्छीतरहसे इला (पृथिवी)का पालन करनेसें लोकोने 'इलच' एसा नाम दियाथा ३१ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034788
Book TitleChamatkari Savchuri Stotra Sangraha tatha Vankchuliya Sutra Saransh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshantivijay
PublisherHirachand Kakalbhai Shah
Publication Year1923
Total Pages100
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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