________________
सोचकर उसने अपने जार पुरुषको बुलाया । लड़का खा पीकर निश्चित सोता है । सगी मांके आगे बच्चेको डर कैसा ? यह कल्पना भी बच्चेको कैसे आ सकती है कि, मेरी माँ मुझे मार डालेगी । दुष्टा स्त्रीने उस जार पुरुषको कहा कि-" इसे मार डालो" उस पुरुषका हृदय काँपने लगा। उसने कहाः-" हाय ! हाय ! ऐसे निर्दोष बालकको कैसे मारूँ ? अरे बाई ! तेरा यह इकलौता पुत्र है; त इसे मारनेका साहस क्यों करती है ? " स्त्रीने कहा-" हमारी बात लड़का समझ गया है और जरूर यह अपने दादासे ( मेरे श्वशुरसे ) कह देगा। परिणाम यह होगा कि, हमारा आनंद-मजा जाता रहेगा । इसलिए लड़केको पूरा करना ही अच्छा है । अतः आओ हम दोनों इस कामको परा करें।" यद्यपि पुरुषकी हिम्मत नहीं होती थी, उसके हाथ पैर काँपते थे, तथापि उसको स्त्रीकी इच्छाके आधीन होना पड़ा। उन दोनोंने मिलकर-उस निर्दोष निरपराधी बालकके मुँहमें कपड़ा लूंसकर उसे यमराजका अतिथि बना दिया। फिर उन्होंने मिलकर घरके बाहिर खड्डा खोदा और उसमें लड़केके शरीरको गाड़ दिया । उफ ! दुष्ट विषय ! तुझे हनार बार धिक्कार है ! तेरे फंदेमें फंसे हुए उत्तम कुलके मनुष्य भी ऐसे अधमातिअधम कार्य करनेसे पीछे नहीं हटते हैं।
दूसरे दिन उस लड़केका दादा घर आया। आते ही पूछा" अमृतलाल कहाँ है!" (याद रखना चाहिये कि बूढ़ेदादाका
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com