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जिस प्रकार मकान बनानेवाले मकानके पायेको मजबूत बनाते हैं, उसी प्रकार इस शरीरके जीवनका पाया भी वीर्यकी रक्षाकरके मजबूत बनाना चाहिए और इसी हेतुसे हिन्दुधर्मशास्त्रों में मनुष्यजीवनके चार विभाग किये गये हैं। वे विभाग आश्रमोंके नामसे पहचाने जाते हैं। उनमेंसे प्रथम विभागका नाम ब्रह्मचर्याश्रम रक्खा गया है। कमसेकम वीयरक्षा कहाँतक करनी चाहिए ? ___बालकोंको, अमुक वर्षांतक गुरुके समागममें रखकर ब्रह्मचर्य पालनपूर्वक विद्या संपादन कराना ब्रह्मचर्याश्रम है। अभी इस ब्रह्मचर्याश्रम अवस्थानुसार वर्ताव करनेवाले कितने मनुष्य हैं ? पूर्व समयमें यह नियम था कि, माता-पिता अपने बालकोंको आठ वर्ष तक अपने पास रखते थे । तत्पश्चात् वे उनको गुरुके पास भेज देते थे। वे पचीस वर्ष तक वहीं रहते थे और ब्रह्मचर्यकी रक्षा करते हुए विद्याध्ययन करते थे। हिन्दुधर्मशास्त्रोंके " छांदोग्य उपनिषद् " का अभिप्राय है कि “ बच्चे पांच वर्षकी वय होने तक माताके पास और आठ वर्ष की वय तक पिताके पास रहें । तत्पश्चात् लड़का नौसे लेकर ज्यादासे ज्यादा ४८ वर्ष तक और कमसे कम २५ वर्षतक तथा कन्या ९ से लेकर ज्यादासे ज्यादा २४ वर्ष तक और कमसे कम १६ वर्ष की वयतक गुरुके पास रहकर जितेन्द्रियतापूर्वक विद्या संपादन करे।जो पुत्रपुत्री इस तरह विद्वान् बनते हैं वे ही धर्म, अर्थ और कामके
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