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चाहे कैसे ही उत्तम वायुका सेवन करे मगर यदि वह वीर्यकी रक्षा नहीं करेगा तो उस उत्तम वायुका सेवन उसके लिए कुछ भी लाभदायक नहीं होगा। इसलिए साधु साध्वियोंको चाहिए कि वे उपर्युक्त नियम ध्यानमें रखें और अपने शरीरकी रक्षाके लिए ब्रह्मचर्यका बराबर पासन करें । गृहस्थियोंके पालनेका ब्रह्मचर्य । ____ अब हम गृहस्थियोंके पालने योग्य नियमकी ओर ध्यान देंगे। गृहस्थोंकी गृहस्थाईका मूल कारण भी ब्रह्मचर्यही है। अर्थात् गृहस्थी भी यदि अपने अधिकारमें रहते हैं-अपनी मर्यादामें रहते हैं तो वे गृहस्थावस्थाका उचित सुख अनुभव कर सकते हैं; अन्यथा उनको अपना जीवन बड़े भारी दुःख के साथ व्यतीत करना पड़ता है। संसारमें जन्म धारणफर जो मनुष्य अपनी मर्यादामें नहीं रहता है, वह रातदिन शोक, भय और चिन्तामें ही अपना जीवन बिताता है । ऐसे भी कई मनुष्य हमारे नजर आते हैं कि जिन बिचारोंने जीवनभर कभी शरीरका सुख देखा ही नहीं है । इसका कारण यही है कि, उनको प्रथमहीसे-जन्महीसे जिस तरह रहना चाहिए था उस तरह वे नहीं रहे । इसी लिए खास तरहसे यह कहा जाता है कि मनुष्यको अपने जीवनका पाया ऐसा मजबूत बनाना चाहिए कि-निससे उसे अपनी जीवनरूपी इमारतके लिए कभी किसी तरहका भय न रखना पड़े।
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