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इस बातसे हम यह भली प्रकार समझ सकते हैं, कि वीर्यकी रक्षा-ब्रह्मचर्य का पालन करना मनुष्यमात्रके लिए आवश्यक है । 'मनुष्यमात्र' इस शब्पसे हम यह नहीं कहना चाहते कि सिर्फ स्वर्ग, नरक, पुण्य, पाप और मोक्ष आदिकी आस्था रखनेवाले मनुष्योंकोही ब्रह्मचर्यकी आवश्यकता है। परन्तु हम तो कहते हैं कि जो लोग पुण्य, पाप, स्वर्ग, नरक और मोक्षादिको नहीं मानते हैं और मात्र संसारके सुखों को ही वास्तविक मानकर मौज-शौकमें तल्लीन रहते हैं, उनके लिए भी ब्रह्मचर्य पालना अति आवश्यक है। धर्मतत्त्वसे अज्ञात मनुष्य भी ब्रह्मचर्यकी आवश्यकताको स्वीकार करते हैं । इस बातको हरेक चाहे वह आस्तिक हो या नास्तिक, धर्मी हो या अधर्मी स्वीकार करता है कि शरीरका नष्ट होना या उसमें अनेक प्रकारकी व्याधियोंका उत्पन्न होना बहुत बुरा है । अतः धर्मको छोड़कर भी वीर्यकी रक्षा करना मनुष्यजातिका प्रथम कर्तव्य है। ब्रह्मचर्य के दो भेद। ___ मनुष्यनातिके दो विभाग हैं। उनमें से पहिलेमें साधु हैं
और दूसरेमें गृहस्थ । इन दो विभागों के कारण ही शास्त्रकारोंने ब्रह्मचर्यकेभी दो भेद किये हैं। १ सर्वथा और २ देशतः । साधुओंको हमेशा सर्वथा ब्रह्मचर्यका पालन करना चाहिए। यानी स्त्रीमात्रसे दूर रहना चाहिए । और देशतः वह है, कि
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