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________________ यद्यपि अब तो ऐसा भी कहा जाता है कि- 'सूर्य भी आकाशगंगावर्ती सौरि नामक ग्रह की ओर दौड़ रहा है । इस प्रकार "पृथ्वी का भ्रमण तीन गतियों से होता है:१- स्वयं की धुरा पर होने वाली गति । २-सूर्य के आसपास की भ्रमण गति । ३–पृथ्वी सहित अपने ग्रहों और उपग्रहों के साथ होने वाली सूर्य के साथ भ्रमण गति।" यह बात हम जहाँ-तहाँ और जब-तब सुनते ही आये हैं। फलतः हम में से अनेक महानुभावों की यह मा यता रूढ होगई है कि-"पृथ्वी गोल-गोल भंवरे को तरह घूमती है । पृथ्वी के धुरो पर होने वाले भ्रमण के कारण रात और दिन की व्यवस्था होता है तथा सूर्य के आसपास के भ्रमण के कारण वर्ष की गणना होती है।" वैज्ञानिकों का अधिकांश बहुमत आज भू-भ्रमण की बात को ही सत्य मानकर अन्य संशोधन कर रहा है। 'भू-भ्रमण' इनका सिद्धान्त ( Theory) बन गया है। इस विषय को अधिक स्पष्ट करने अथवा विचार-विमर्श करने के लिये कोई तैयार नहीं है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034780
Book TitleBhugol Vigyan Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRudradev Tripathi
PublisherPunamchand Panachand Shah
Publication Year1968
Total Pages46
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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