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हैं और अपने केन्द्र के चारों ओर एकसाथ घूमते हैं । इस ग्लेस्टिक सिस्टम का केन्द्र भी स्थिर नहीं माना जा सकता है; क्यों कि लाखों को संस्था में ग्लेस्टिक सिस्टम का केन्द्र भी स्थिर नहीं माना जा सकता हैं; क्यों कि तारों की संख्या में ग्लेस्कि सिस्टम आकाश में दिखाई दे रहे हैं जो हमारे ही ग्लेस्टिक सिस्टम के बराबर हैं और सबके सब ग्लेस्टिक सिस्टम अपने ग्लेस्टिक सिस्टम की अपेक्षा से और दूसरे की अपेक्षा से गति करते हैं। एक भी ग्लेस्टिक सिस्टम स्थिर नहीं है जो सबका केन्द्र या गति का मापदण्ड बन सकता हो। तो भी हम मान लें कि सूर्य स्थिर है न कि पृथ्वी। तो बहुत सारी उलझनें दूर हो जाती हैं। एकान्त दृष्टि में न सूर्य स्थिर है और न पृथ्वी। फिर भी एक दृष्टि से पृथ्वी स्थिर सूर्य के आसपास घूमती है, यह सत्य के अधिक समीप है वनस्पति सूर्य एक स्थिर पृथ्वी के चारों ओर घूमता है। कोपरनिकस को भी कुछ एक उपचक्र (EpicJcles) मानने पड़े। दृश्य तथ्यों के साथ अपने सिद्धान्तों का संतुलन रखने के लिए यह इसका अनिवार्य परिणाम था कि ग्रहों की कक्षायें गोल थीं। कोपरनिकस ने या
और किसी ने अरिस्टोटल के वर्तुंलाकार कक्षा सम्बन्धी सिद्धान्त का खण्डन करने का साहस नही किया । केपलर ने कोपरनिकस के वर्तुल सिद्धान्त के स्थान पर अण्डाकार कक्षा को सिद्धान्त माना। तब से उपचक्र (Epicycles) का सिद्धान्त अनावश्यक हो गया और ग्रहों की गति का सिद्धान्त अत्यन्त सरल हो गया। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com