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________________ पंजाब-सिन्ध-काठियावाड़-गुजरात-राजपूताना-मालवा-बुन्देलखण्ड के लोग मद्यपान के शौकीन होते थे । उज्जयिनी व्यापार का बड़ा केन्द्र था । उज्जयिनी में महाकाल नाम का प्राचीन मन्दिर था, जिसका उल्लेख कालिदास ने मेघदूत में किया है । यह मन्दिर आजकल महाकालेश्वर के नाम से प्रख्यात है। दक्षिण अवन्ति की राजधानी माहिष्मती थी। किसी समय यह बहुत समृद्वावस्था में थी । बौद्ध ग्रन्थों में इसे महेश्वरपुर कहा गया है । - माहिष्मती की पहचान नर्मदा के दाहिने किनारे पर महिष्मति अथवा महेश नामक स्थान से की जाती है। यह स्थान इन्दौर से पैंतालीस मील की दूरी पर है । दशार्ण का नाम जैन आर्य क्षेत्रों में आता है । दशार्ण का उल्लेख महाभारत और मेवदूत में भी मिलता है । यहाँ की तलवारें बहुत अच्छी होती थीं। भिलसा के आसपास के प्रदेश को दशार्ण माना जाता है। मृत्तिकावती दशार्ण की राजधानी थी । यह नगरी नर्मदा के किनारे थी। ब्राह्मणों की हरिवंश पुराण में इसका उल्लेख मिलता है। __ मेघदूत में विदिशा को दशार्ण की राजधानी कहा गया है । यहाँ महावीर की चन्दन-निर्मित मूर्ति थी। प्राचार्य महागिरि तथा सुहस्ति ने यहाँ विहार किया था । भरहत के शिलालेखों में विदिशा का उल्लेख मिलता है। यहाँ बहुत से पुराने स्तूपों के अवशेष उपलब्ध हुए हैं। विदिशा वेत्रवती (बेतवा) के किनारे पर थी, और यहाँ के वस्त्र बहुत अच्छे होते थे । विदिशा की पहचान आधुनिक भिलसा से की जाती है । दशार्णपुर दशार्ण का दूसरा प्रसिद्ध नगर था । जैन अनुश्रुति के अनुसार इसका दूसरा नाम एडकाक्षपुर था । बौद्ध ग्रन्थों में इसे एरकच्छ नाम से कहा गया है । यह नगर वत्थगा (बेतवा ) नदी के किनारे था, और व्यापार का बड़ा केन्द्र था। दशार्णपुर की पहचान झाँसी जिले के एरछ नामक स्थान से की जा सकती है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034773
Book TitleBharat ke Prachin Jain Tirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherJain Sanskriti Sanshodhan Mandal
Publication Year1952
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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