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________________ भारत के प्राचीन जैन तीर्थ २: पश्चिमी उत्तरप्रदेश प्राचीन काल में पांचाल (रुहेलखण्ड ) एक समृद्धिशाली जनपद था । महाभारत में इसका अनेक जगह उल्लेख आता है। पांचाल में जन्म होने के कारण द्रौपदी पांचाली कही जाती थी। बदायूँ, फ़र्रुखाबाद और उसके इर्दगिर्द के प्रदेश को पांचाल माना जाता है। ____ भागीरथी नदी के कारण पांचाल देश दो भागों में विभक्त था, एक दक्षिण पांचाल दूसरा उत्तर पांचाल | महाभारत के अनुसार दक्षिण पांचाल की राजधानी कांपिल्य और उत्तर पांचाल की राजधानी अहिच्छत्रा थी। कांपिल्यपुर अथवा कम्पिलनगर गङ्गा के तट पर बसा था। यहाँ बड़ी धूमधाम से द्रौपदी का स्वयंवर रचा गचा था। जैनों के १३वें तीर्थकर विमलनाथ की यह जन्मभूमि थी । यहाँ महावीर के श्रावक रहते थे, और यहाँ इन्द्र महोत्सव मनाया जाता था। कांपिल्यपुर की पहचान फ़र्रुखाबाद जिले के कंपिल नामक स्थान से की जाती है। यहाँ बहुत-सी खंडित प्रतिमाएँ मिली हैं । यहाँ कई जैन मन्दिर है. और मूर्तियों पर लेख खुदे हैं । दक्षिण पांचाल की दूसरी राजधानी माकंदी थी। यह नगरी व्यापार का केन्द्र था। हरिभद्र सूरि की समराइच्चकहा में इस नगरी का वर्णन अाता है । अहिच्छत्रा या अहिक्षेत्र उत्तर पांचाल की राजधानी थी। जैन सूत्रों में इसे जांगल अथवा कुरु जांगल की राजधानी बताया गया है । यह नगरी शंखवती, प्रत्यग्ररथ और शिवपुर नाम से भी पुकारी जाती थी। इसकी गणना अष्टापद, ऊर्जयन्त, गजाग्रपदगिरि, धर्मचक्र और रथावर्त नामक पवित्र तीथों के माथ की गई है। जैन मान्यता के अनुसार यहाँ धरणेन्द्र ने अपने फण से पार्श्वनाथ की रक्षा की थी। लेकिन आजकल यह तीर्थ विच्छिन्न है । हुअन-सांग के समय यहाँ नगर के बाहर नागह्रद था, जहाँ बुद्ध भगवान् ने सात दिन तक नागराज को उपदेश दिया था। इस स्थान पर सम्राट अशोक ने स्तूप बनवाया था । जिनप्रभ सूरि के विविधतीर्थकल्प में कहा गया है कि यहाँ ईटों का किला ( ४२ ) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034773
Book TitleBharat ke Prachin Jain Tirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherJain Sanskriti Sanshodhan Mandal
Publication Year1952
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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