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________________ उत्तरप्रदेश चलता है कि इसके थोड़े से भाग में ही जैनधर्म का प्रसार हुआ था; मम्भवतः अवशिष्ट भाग में जङ्गली जातियाँ बसती हों। केकय देश श्रावस्ति के उत्तर-पूर्व में नेपाल की तराई में अवस्थित था । सेयविया (श्वेतिका) केकय की राजधानी थी। बौद्ध सूत्रों में इसका नाम सेतव्या बताया गया है। यह नगरी कोशल देश में थी। जैन परम्परा के अनुमार यहाँ महावीर के केवलज्ञान होने के २१४ वर्ष बाद नीमरे निह्नव की स्थापना हुई। बुद्ध की जन्मभूमि होने के कारण कपिलवस्तु को बौद्ध ग्रन्थों में महानगर बताया गया है । शाक्यों की यह राजधानी थी। इसके पास रोहिणी नदी बहती थी, जो शाक्य और कोलियों के बीच की मीमा थी। चीनी यात्री फाहियान के समय यह नगर उजाड़ पड़ा था। कपिलवस्तु की पहचान नैपाल की तराई में रुम्मिनदेई नामक स्थान से की जाती है । यह स्थान घने जङ्गलों से आच्छादित है । कुसीनारा बुद्ध की परिनिर्वाण भूमि होने से पवित्र स्थान माना जाता है । यह नगरी मल्लों की राजधानी थी; इसका पुराना नाम कुसावती था । सम्राट अशोक ने यहाँ अनेक स्तूप और विहार बनवाये थे । हुअन-सांग ने इस तीर्थ के दर्शन किये थे। कुसीनारा की पहचान गोरखपुर जिले के कसया नामक ग्राम से की जाती है। कुमीनारा के पास पावा नगरी थी । यह मल्लों को राजधानी थी। कुसीनारा और पावा के बीच ककुत्था नदी बहती थी। पावा की पहचान गोरखपुर जिले के पड़रौना नामक स्थान से की जाती है। गोरखपुर जिले में दूसरा स्थान खुखुन्दो है । इसका प्राचीन नाम किष्किन्धापुर बताया जाता है । जैन यात्री यहाँ यात्रा करने आते हैं । यहाँ पार्श्वनाथ की मूर्ति को लोग नाथ कह कर उसकी पूजा करते हैं । यह स्थान गोरखपुर के पूर्व में लगभग २५ कोस पर है। ( ४१ ) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034773
Book TitleBharat ke Prachin Jain Tirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherJain Sanskriti Sanshodhan Mandal
Publication Year1952
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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