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भारत के प्राचीन जैन तीर्थ
अनुयायी कहा गया है । आवश्यकचूर्णि में पार्श्वनाथ के अनेक श्रमणों का उल्लेख मिलता है जो महावीर की साधु जीवन की चारिका के समय मौजूद थे । उदाहरण के लिये, उत्पल श्रमण ने पार्श्वनाथ की श्रमण परम्परा में दीक्षा ली थी, लेकिन बाद में उन्होंने दीक्षा छोड़ दी और अहियगाम में ज्योतिषी बनकर रहने लगे। सोमा और जयन्ती उत्पल की दो बहिनें थीं। इन्होंने भी पार्श्वनाथ की दीक्षा छोड़कर परिव्राजिकाओं की दीक्षा ले ली थी।
पार्श्वनाथ के दूसरे श्रमण स्थविर मुनिचन्द्र थे । ये बहुश्रुत स्थविर अपने शिष्य परिवार के साथ कुमाराय संनिवेश में किसी कुम्हार की शाला में रहते थे । एक बार मंखलिपुत्र गोशाल जब महावीर के साथ विहार कर रहे थे तो वे स्थविर मुनिचन्द्र के पास आये और उन्हें प्रारम्भ तथा परिग्रह सहित देखकर उन्होंने प्रश्न किया कि आप लोग सारंभ और मपरिग्रह होकर भी श्रमण निग्रंथ कैसे कहे जा सकते हैं ? बात यहाँ तक बढ़ गई कि गोशाल ने उनके निवास स्थान (प्रतिश्रय ) को जला देने की धमकी दी। लेकिन महावीर ने गांशाल को समझाया कि वे लोग पार्श्वनाथ के अनुयायी स्थविर साधु है, अतएव उनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता । इन स्थविरों के आचार-विचार के सम्बन्ध में कहा गया है कि ये अन्त में जिनकल्प धारण करते थे, तथा तप, सत्त्व, सूत्र, एकत्व और बल नामक पाँच भावनाओं से संयुक्त होकर उपाश्रय में, उपाश्रय के बाहर, चौराहों पर, शून्यगृहों में और श्मशानों में रहकर तप करते थे। ___ भगवती सूत्र में वाणियगाम निवासी श्रमण गांगेय का उल्लेख आता है, जिन्होंने पार्श्वनाथ का चातुर्याम धर्म त्याग कर महावीर के पाँच महाव्रत स्वीकार किये । उक्त सूत्र में तुंगिय नगरी को पार्श्वनाथ के स्थविरों का केन्द्रस्थान बताते हुए वहाँ ५०० स्थविरों के विहार करने का उल्लेख है । इन स्थविरों में कालियपुत्र, मेहिल, आनन्दरक्खिय और कासव के नाम मुख्य हैं ।
सूत्रकृतांग में पार्श्वनाथ के अनुयायी मेदार्य गोत्रीय उदक पेढालपुत्त का नाम आता है । महावीर के प्रधान शिष्य गौतम इन्द्रभूति के साथ इनका वाद हुआ और अन्त में इन्होंने महावीर के पास जाकर उनके पाँच महाव्रतों को स्वीकार किया । उत्तराध्ययन सूत्र में चतुर्दश पूर्वधारी कुमारश्रमण केशी का उल्लेख पाता है । केशीकुमार अपने ५०० शिष्य-परिवार के साथ श्रावस्ति नगरी में विहार करते थे। यहाँ पर गौतम इन्द्रभूति के साथ इनका वार्तालाप
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