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[ 8 ] ही, महावीरके समय-सम्बन्धमें यदि कोई भ्रम होगा तो उसका सहज हीमें संशोधन भी कर सकेंगे। __ इस निवन्धका पर्वार्ध साधारण जनतामें अधिकताके साथ प्रचार किये जानेके योग्य है और इस दृष्टि से भगवान महावीर' शीर्षकके साथ उसे अलग भी छपाया जा सकता है ।
अन्तमें मैं उन सभी लेखकोंका हृदयसे आभार मानता हूँ जिनके लेखों अथवा ग्रन्थादिक परसे इस निबन्धके लिखने तथा संशोधनादि करनेमें मझे कुछ भी सहायताकी प्राप्ति हुई है। साथ ही, प्रकाशक महाशय बाबू पन्नालालजीका आभार माने विना भी मैं नहीं रह सकता, जिनके उत्साह और अनुरोधके विना यह पस्तक इस रूपमें इतनी शीघ्र शायदही पाठकोंकी सेवामें उपस्थित हो सकती।
सरसावा जि.सहारनपुर। ता० १६-२-१९३४ ।
जुगलकिशोर मुख्तार ।
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