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[7] चाहिये-वर्तमान वर्षका द्योतक नहीं । और वह हिसाबसेमहीनोंकी भी गणना साथमें करते हुए-ठीकही है । बादको बाबू भोलानाथजी मुख्तार और पं०कैलाशचन्द्रजी शास्त्री आदिके और भी कुछ लेख प्रकृत विषयका समर्थन करते हुए प्रकट हुए हैं। और इस तरह उस वक्तसे प्रचलितवीरनिर्वाण-संवत्की सत्यताका विषय बराबर निर्विवाद होता चला जाता है, यह बड़ी ही प्रसन्नताका विषय है। __मेरे इस निबन्धको पुस्तकरूपमें देखनेके लिये कितनेही सज्जन बहुत समय से उत्कंठित थे। मैं भी नई मालमातके आधार पर इसमें कुछ संशोधन तथा परिवर्धन कर देना चाहता था, जिसका मुझे अभी तक अवसर नहीं मिल रहाथा । हालमें उत्साही नवयुवक बाबू पन्नालालजीने छपानेके लिये निबन्धकी संशोधित कापीमांगी, उनके इस अनुरोधको पाकर मुझे संशोधनादिके कार्य में प्रवृत्त होना पड़ा और कितना ही नया परिश्रम करना पड़ा । संशोधनके अवसर पर इसके दोनों विभागोंमें यथास्थान धवल और जयधवल नामक सिद्धान्त ग्रन्थोंके भी कितने ही प्रमाणोंका समावेश किया गया है, जिनका परिचय मुझे उक्त प्रन्थोंके अवलोकनसे कुछ समय पर्व ही हुआ है और जिनसे इस निबन्धकी उपयोगिता और भी ज्यादा बढ़ गई है । इसतरह मैंने इस निबन्धमें कितना ही संशोधन तथा परिवर्धन करके इसे अप-टू-डेट बना दिया है, और इसलिए अब यह अपने इस संशोधित तथा परिवर्धित रूपमें ही पाठकोंके हाथोंमें जा रहा है । आशा है सहृदय पाठक इससे विशेष लाभ उठाएँगे-भगवान महावीरके जीवन, मिशन एवं शासनके महत्व को ठीक तौर पर समझेंगे और उनकी शिक्षाओंको जीवनमें उतारकर अपना तथा देशका हितसाधन करनेमें समर्थ होंगे । साथ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com