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महावीरका समय
४३ बात हो ठीक बैठती है कि इस विक्रमने १८ वर्षकी अवस्थामें राज्य प्राप्त करके उसी वक्तसे अपना संवत् प्रचलित किया है । ऐसा मानने के लिये इतिहासमें कोई भी समर्थ कारण नहीं है । हो सकता है कि यह एक विक्रमकी बातको दूसरे विक्रमके साथ जोड़ देनेका ही नतीजा हो।
इसके सिवाय, नन्दिसंघकी एक पट्टावलीमें-विक्रमप्रबन्धमें भी-जो यह वाक्य दिया है कि"सत्तरिचदुसदजुत्तो जिणकाला बिकमो हवइ जम्मो।" ___अर्थात् –'जिनकालमे (महावीरके निर्वाणसे) विक्रमजन्म ४७० वर्षके अन्तरको लिये हुए है । और दूसरी पट्टावलीमें जो आचार्यों के समयकी गणना विक्रमके राज्यारोहण-कालस-उक्त जन्मकालमें १८ की वद्धि करके-की गई है वह सब उक्त शककालको और उसके आधार पर बने हुए विक्रमकालको ठीक न समझनेका परिणाम है, अथवा यों कहिये कि पार्श्वनाथके निर्वाणसे ढाईसौ वर्ष बाद महावीरका जन्म या केवलज्ञानको प्राप्त होना मान लेने जैसी ग़लती है।
ऐसी हालतमें कुछ जैन, अजैन तथा पश्चिमीय और पर्वीय विद्वानोंने पट्टावलियोंको लेकर जो प्रचलित वीरनिर्वाणसंवत् पर यह आपत्ति की है कि 'उसकी वर्षसंख्यामें १८ वर्षकी कमी है जिसे परा किया जाना चाहिये वह समीचीन मालूम नहीं होती,
और इसलिये मान्य किये जानेके योग्य नहीं । उसके अनुसार वीरनिर्वाणसे ४८८ वर्ष बाद विक्रमसंवतका प्रचलित होना माननेसे विक्रम और शक संवतोंके बीच जो १३५ वर्षका प्रसिद्ध अंतर
* विक्रमजन्मका प्राशय यदि विक्रमकाल अथवा विक्रमसंवतकी उत्पत्तिसे लिया जाय तो यह कथन ठीक हो सकता है। क्योंकि विक्रमसंवतकी उत्पत्ति विक्रमकी मृत्युके बाद हुई पाई जाती है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com