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भगवान महावीर और उनका समय धवल और जयधवल नामके सिद्धान्त ग्रंथों में क्षेत्ररूपसे महावीर. का अर्थकर्तृत्व प्ररूपण करते हुए, 'पंचशैलपुर' नामसे उल्लेखित किया है । यहीं पर आपका प्रथम उपदेश हुआ है केवल. ज्ञानोत्पत्तिके पश्चात् आपकी दिव्य वाणो खिरी है और उस उपदेशके समयसे ही आपके तीर्थकी उत्पत्ति हुई है। राजगहीमें उस वक्त राजा श्रेणिक राज्य करता था, जिसे बिम्बसार भी कहते हैं । उसने भगवान्को परिषदोंमें-समवसरण सभाओंमेंप्रधान भाग लिया है और उसके प्रश्नों पर बहुतसे रहस्योंका उद्घाटन हुआ है । श्रेणिककी रानी चेलना भी राजा चेटककी पुत्री थी और इस लिये वह रिश्तेमें महावीरकी मातृस्वसा (मावसी) होती थी। इस तरह महावीरका अनेक राज्योंके साथ
“अथ भावान्सम्पापदिव्यं वैमार पर्वतं रम्यं ।
चातुर्वण्र्य-सुसंघस्तत्राभूद् गौतमप्रभृति ॥ १३ ॥ "दशविधमनगाएणामेकादशधोत्तरं तथा धर्म । देशयमानो व्यहरत त्रिंशद्वर्गण्यथ जिनेन्दः ॥१५॥
-निर्वाणभक्ति। * पंचसेलपुरे रम्भे विउले पव्वदुत्तमे ।
णाणादुमसमाइएणे देवदाणववंदिदे ॥ महावीरेण (अ)त्यो कहिश्रो भवियलोअस्स ।
यह तीर्थोत्पत्ति श्रावण-कृष्ण प्रतिपदाको पूर्वाग्रह (स्योदय) के समय अभिजित नक्षत्रमें हुई है, जैसा कि धवल सिद्धान्तके निम्न वाक्यसे प्रकट है
वासस्स पढममासे पढमे पक्खम्मि सावणे बहुले ।
पाडिवदपुवदिवसे सित्थुप्पत्ती दु अभिजिम्हि ॥२॥
+ कुछ श्वेताम्बरीय ग्रन्थानुसार 'मातुलजा'-मामजाद बहन । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com