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महावीर-परिचय कमजोरियाँ हटाई, भय भगाया, आत्मविश्वास बढ़ाया, कदाग्रह दूर किया, पाखण्डबल घटाया, मिथ्यात्व छुड़ाया, पतितोंको उठाया, अन्याय-अत्याचारको रोका, हिंसाका विरोध किया, साम्यवादको फैलाया और लोगोंको स्वावलम्बन तथा संयमकी शिक्षा दे कर उन्हें आत्मोत्कर्षके मार्ग पर लगाया । इस तरह पर आपने लोकका अनन्त उपकार किया है और आपका यह विहार बड़ा ही उदार, प्रतापी एवं यशस्वी हुआ है । इसीसे स्वामी समन्तभद्रने स्वयंभस्तोत्रमें 'गिरिभित्यवदानवतः' इत्यादि पद्यके द्वारा इस विहारका यत्किंचित् उल्लेख करते हुए, उसे "ऊर्जितं गतं" लिखा है।
भगवानका यह विहार-काल ही उनका तीर्थ-प्रवर्तनकाल है, और इस तीर्थ-प्रवर्तनकी वजहसे ही वे 'तीर्थकर' कहलाते हैं । आपके विहारका पहला स्टेशन राजगहीके निकट विपुलाचल तथा वैभार पर्वतादि पंच पहाड़ियोंका प्रदेश जान पड़ता है, जिसे
* 'जयधवल' में, महावीरके इस तीर्थप्रवर्तन और उनके आगमकी प्रमाणताका उल्लेख करते हुए, एक प्राचीन गाथाके आधार पर उन्हें निःसंशयकर ( जगतके जीवोंके संदेहको दूर करने वाले ), वीर (ज्ञानवचनादिको सातिशय शक्तिसे सम्पन्न), जिनोत्तम (जितेन्दियों तथा कर्मजेताओंमें श्रेष्ठ), राग-द्वेष-भयप्ते रहित और धर्मतीर्थ-प्रवर्तक लिखा है । यथा :
हिस्संसयकरो वीरो महावीरो जिणु त्तमो।
राग-दोस-भयादीदो धम्मतित्थस्स कारो॥ + आप ज़म्भका ग्रामके ऋजुक्ला-तटसे चलकर पहले इसी प्रदेश में पाए हैं। इसीसे श्रीपूज्यपादाचार्य ने आपकी केवलज्ञानोत्पत्ति के उस कथनके अनन्तर जो ऊपर दिया गया है आपके वैभार पर्वत पर आनेकी बात कही है और तभीसे आपके तीस वर्षके विहारकी गणना की है । यथा:Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com