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________________ भगवान महावीर ९४ पराकाष्टा पर पहुंच गया था और इसी कारण शायद उन्होंने इस नवीन उपपत्ति को रचना की थी। __ इस विषय में डाक्टर हर्मन जेकोबी का मत कुछ दूसरा ही है। उनका कथन है कि, सिद्धार्थ राजा के दो गनियां थीं, पहली पटरानी का नाम त्रिशला था, यह क्षत्रिय कुलोत्पन्न थी और दूसरी को नाम "देवानन्दा" था यह ब्राह्मणी थी। भगवान महावीर का जन्म देवानन्दा के गर्भ से हुआ था । पर चूंकि त्रिशला वैशाली के राजा "चेटक" की बहन थी, और सिद्धार्थ को पटरानी भी थी, इसलिए महावीर का जन्म उसकी कुक्षि से हुआ यह प्रकाशित कर देने से एक साथ दो लाभ होते थे । पहला तो यह कि, वैशाली के समान विस्तृत राज्य से उनका सम्बन्ध और भी दृढ़ हो जाता और दूसरा यह कि "महावीर" युवराज भी बनाये जा सकते थे । सम्भवतः इसी बात को सोच कर उन्होंने यह बात प्रकट कर दी हो तो क्या आश्चार्य ? इस बात की और भी पुष्टि करने के लिये वे निम्नांकित प्रमाण पेश करते हैं:.. वे कहते हैं कि "ऋषभदत्त" को देवानन्दा का पति कहने की बात बिल्कुल असत्य है, क्योंकि प्राकृतिभाषा मैं किसी व्यक्ति वाचक शब्द के आगे "दत्त" शब्द का प्रयोग अवश्य होता है पर वह भी ब्राह्मणों के नाम के आगे नहीं हो सकता । अतएव "देवानन्दा" का पति "ऋषभदत्त" था यह कल्पना बहुत पीछे से मिलाई गई है। जेकोबी साहब की पहली कल्पना तो विशेष महत्व नहीं रखती, उनका यह कहना कि क्षत्रिय राजासिद्धार्थ की एक रानी देवानन्दा ब्राह्मणी भीथी यह बिल्कुल भूल,से भरी हुई बात है। क्योंकि उस Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034764
Book TitleBhagwan Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1925
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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