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________________ भगवान् महावीर ८२ कई यूनानी जैन और बौद्ध ग्रन्थों से साबित कर दिया है । यद्यपि वसु महोदय का यह मत अभी तक सर्वमान्य नहीं हुआ है, तथापि यदि उनका यह अनुसन्धान ठीक निकला तो फिर जेकोबी साहब की ये तीनों उपपत्तियां एकदम निर्मूल हो जायँगी । पर जहां तक चन्द्रगुप्त का काल ई० पू० ३२२ माननीय है, वहाँ तक जेकोबी साहब की यह तीसरी उपपत्ति अवश्य कुछ मादा रखती है। पर इसमें भी कई प्रश्न उत्त्पन्न होते हैं । यदि हम हेमचन्द्राचार्य को प्रमाण मानें तो यह निश्चय है कि, उनके समय तक महावीर निर्वाण संवत् बराबर वास्तविक रूप में चला आ रहा होगा। फिर आगे जाकर किस समय में, किस उद्देश्य से और किसने इस संवत् में ५० वर्ष और मिला दिये इसका निर्णय करना होगा । ५० वर्ष मिलाने की किसी को क्या आवश्यकता पड़ी। यह प्रश्न बहुत ही विचारणीय है। इसको हल करने का कोई साधन हमारे पास नहीं है। और जहां तक ऐसा साधन नहीं है वहां तक ऐसा कहना भी व्यर्थ है। ___ उपरोक्त विवेचन का मतलब इतना ही है कि महावीर का काल बहुत सोचने पर भी हमारे खयाल से वही ठहरता है जो उनका प्रचलित संवत् कहता है। डा० हर्मन जेकोबी की उपपत्तियां बहुत महत्त्व पूर्ण हैं । पर उनमें शंका के ऐसे ऐसे स्थल हैं कि, उन पर एकाएक विश्वास नहीं किया जा सकता। कुछ वर्षों पूर्व पाटलिपुत्र के सम्पादक और हिन्दी के लब्ध प्रतिष्ठित लेखक श्रीयुत् काशीप्रसाद जायसवाल ने भी महावीर निर्वाण सम्वत् पर एक महत्वपूर्ण निबन्ध लिखा था। उस निबन्ध में उन्होंने महावीर निर्वाण संवत् में १८ वर्ष की भूल Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034764
Book TitleBhagwan Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1925
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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