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________________ ७३ भगवान् महावीर केवल चार थी। १-अहिंसा २-सत्य ३-आचार्य ४-परिगृहपरिमाण । पर समय की अवस्था को देख कर भगवान महावीर ने इनमें "ब्रह्मचर्य्य" नामक एक व्रत की संख्या और बढ़ा दी । इसके अतिरिक्त पार्श्वनाथ ने अपने शिष्यों को एक अधोवस्त्र पहनने की आज्ञा दी है पर महावीर ने अपने शिष्यों को बिल्कुल नग्न रहने की शिक्षा दी है। इससे सम्भवतः यह मालूम होता है कि, आज कल के श्वेताम्बर और दिगम्बर समाज क्रम से पार्श्वनाथ और महावीर के अनुयायी थे। उपरोक्त विवेचन मे यह मतलब निकलता है कि भगवान् महावीर जैनधर्म के मूल संस्थापक न थे। प्रत्युत वे उसके एक संशोधक मात्र थे । अब प्रश्न यह है कि, क्या पार्श्वनाथ ही जैनधर्म के मूल संस्थापक थे ? यद्यपि जैनशास्त्र और जैनसमाज वाले तो इस बात को भी स्वीकार नहीं कर सकते। क्योंकि उनके मत सं ता पार्श्वनाथ के पूर्व भी बाईस तीर्थकर और हो चुके हैं। और उन बाईस तीर्थकरों के पूर्व भी कई चौबिसियां गुजर चुकी हैं तथापि ऐतिहासिक दृष्टि से भगवान पार्श्वनाथ से आगे बढ़ने का अभी तक तो कोई मार्ग नहीं है । लेकिन निरंतर की खोज और उद्योग से जिस प्रकार जैनधर्म के मूल संस्थापक महावीर से पार्श्वनाथ माने जाने लगे । उसी प्रकार सम्भव है और भी जो खोज हो तो क्या आश्चर्य कि, पार्श्वनाथ से पूर्व नेमिनाथ का भी पता लगने लगे । पर अभी तो इसकी कोई आशा नहीं। अभी कुछ अंग्रेज लेखक यह भी कहते हैं:___"जैनियों और बौद्धों ने ब्राह्मणों के साथ प्रतिस्पर्धी करने के लिए ही अपने मत को पुराना बतलाने की चेष्टा की है । इन दोनों Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034764
Book TitleBhagwan Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1925
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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