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________________ भगवान् महावीर लोगों का विश्वास है कि भगवान् महावीर ही जैनधर्म के मूल संस्थापक थे । लेकिन यदि यह बात सत्य होती तो बौद्धग्रन्थों के अन्दर अवश्य इस बात का वृतान्त मिलता, पर बौद्धग्रन्थों में महावीर के लिए कहीं भी यह नहीं लिखा कि वे किसी धर्म विशेष संस्थापक थे। इसी प्रकार उनमें कहीं यह भी नहीं लिखा है कि, निग्रन्थधर्म कोई नया धर्म है। इससे यह सिद्ध होता है कि बुद्ध के पहले भी किसी न किसी अवस्था में जैनधर्म मौजूद था। यह बात अवश्य है कि, उनके पहिले यह बहुत विकृत अवस्था में था। जिसका महावीर ने संशोधन किया। इधर आज कल की खोजों से यह बात सिद्ध हो गयी है कि, पार्श्वनाथ ऐतिहासिक व्यक्ति थे। डाक्टर जेकोबी आदि व्यक्तियों ने यह भी सिद्ध कर दिया है कि पार्श्वनाथ ही जैनधर्म के मूल संस्थापक थे। ये महावीर निर्वाण के करीब २५० वर्ष पूर्व हुए अतएव उनका समय ईसा के पूर्व आठवीं शताब्दी में निश्चय होता है। पार्श्व की जीवन सम्बन्धी घटनाओं और उपदेशों के इतिहास का बहुत कम ज्ञान है। ___ भद्रबाहु स्वामी रचित कल्पसूत्र के एक अध्याय में कई तीर्थकरों की जीवनियां दी हुई हैं। उनमें पार्श्वनाथ की जीवनी भी है । उससे मालूम होता है कि, महावीर से २५० वर्ष पूर्व श्रीपार्श्वनाथ निर्वाण को गये । पार्श्वनाथ काशी के राजा अश्वसन के पुत्र थे । इनकी माता का नाम वामादेवी था। तीस वर्षतक गार्हस्थ्य सुख का उपभोगकर ये मुनि हो गये । ८३ दिन तक ये छदमावस्था में रहे, और ८३ दिन कम सत्तर वर्ष तपस्या करके निर्वाणस्थ हुए । पार्श्वनाथ के समय में अणुव्रतों की संख्या Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034764
Book TitleBhagwan Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1925
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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