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भगवान् महावीर बाल ब्रह्मचारी थे, श्वेताम्बरी कहते हैं नहीं उनका विवाह हुआ था। ऐसी हालत में लेखक के विचारों का ठिकाना नहीं रह जाता, उसे सत्य का अन्वेषण करना महा कठिन हो जाता है । साम्प्रदायिक ढङ्ग से जीवन चरित्र लिखनेवालों को तो इन दिक्कतों का सामना नहीं करना पड़ता पर जो एक सार्वजनिक एवं सर्वोपयोगी ग्रन्थ लिखने बैठता है उसे तो महा भयङ्कर कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है । हमारे खयाल से इसी कारण आजतक किसी भी विद्वान् ने इस कठिनाई पूर्ण काल में हाथ डालना उचित न समझा।
लेकिन इन सब कठिनाइयों और असुविधाओं का अनुभव करते हुए भी हम इस महान् दुस्तर और कठिन कार्य में हाथ डालने का प्रयास कर रहे हैं। भगवान् महावीर का जीवन चरित्र इतना गम्भीर और रहस्यपूर्ण है कि उसे लिखना तो क्या समझना भी महा कठिन है । अनुभव शील और दिग्गज विद्वान् ही इस महान कार्य में सफल हो सकते हैं। हम जानते हैं कि महावीर के जीवन चरित्र को लिखने के लिए जितनी योग्यता की दरकार है उसका शतांश भी हममें नहीं है । फिर भी इस महान् कार्य में हाथ डालने का कारण यह है कि कुछ भी न होने की अपेक्षा कुछ हाना ही अच्छा है, कम से कम भविष्य के लेखकों के लिए ऐसी आधार शिलाओं का साहित्य में होना आवश्यक है।
यहाँ हम यह बतला देना आवश्यक समझते हैं कि हमने यह ग्रन्थ किसी पक्षपात के वश होकर नहीं लिखा है और न इस ग्रन्थ की रचना किसी सम्प्रदाय विशेष ही के लिए की है। इस ग्रन्थ को लिखने का हमारा प्रधान उद्देश्य ही यह है कि इसे सब लोग जैन और अजैन, श्रेताम्बरी
और दिगम्बरी प्रेम पूर्वक पढ़ें और लाभ उठावें । लेखक का यह निर्भीक मन्तव्य है कि "भगवान् महावीर" किसी सम्प्रदाय विशेष की मौरूसी जायदाद नहीं है । वे सारे विश्व के हैं-उनका उपदेश सारे विश्व का वल्याण करता है । ऐसा स्थिति में यदि कोई पाठक इसमें साम्प्रदायिकता Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com