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________________ ४५५ भगवान् महावीर (३) हिन्दुओ ! अपने इन बुजगों की इज्जत करना सीखो ....."तुम इनके गुणों को देखो, उनकी पवित्र सूरतों का दर्शन करो, उनके भावों को प्यार की निगाह से देखो, वह धर्म कर्म की झलकती हुई चमकती मूर्तियाँ हैं ... 'उनका दिल विशाल था, वह एक वेपायाकनार समन्दर था जिसमें मनुष्य प्रेम को लहरें जोर शोर से उठती रहती थीं और सिर्फ मनुष्य ही क्यों उन्होंने संसार के प्राणीमात्र की भलाई के लिये सब का त्याग किया । जानदारों का खून बहना रोकने के लिये अपनी ज़िन्दगी का खून कर दिया । यह अहिंसा की परम ज्योतिवाली मूर्तियाँ हैं। ये दुनियाँ के ज़बरदस्त रिफार्मर, जबरदस्त उपकारी और बड़े ऊँचे दर्जे के उपदेशक और प्रचारक गुजरे हैं। यह हमारी क़ौमी तवारीख (इतिहास) के कीमती [बहुमूल्य रत्न हैं। तुम कहाँ और किन में धर्मात्मा प्राणियों की खोज करते हो इन्हीं को देखो । इनसे बेहतर [उत्तम साहबे कमाल तुमको और कहां मिलेंगे । इनमें त्याग था, इनमें वैराग्य था, इनमें धर्म का कमाल था, यह इन्सानी कमजोरियों से बहुत ही ऊँचे थे। इनका खिताब "जिन" है । जिन्होंने मोहमाया को और मन और काया को जीत लिया था । यह तीर्थकर हैं । इनमें बनावट नहीं थी, दिखावट नहीं थी, जो बात थी साफ साफ थी । ये वह लासानी [अनौपम शखसीयतें हो गुजरी हैं। जिनको जिसमानी कम जोरियों, व ऐबों के छिपाने के लिये किसी जाहिरी पोशाक की जरूरत महसूस नहीं हुई। क्योंकि उन्होंने तप करके, जप करके, योग का साधन करके, अपने आप को मुकम्मिल और पूर्ण • बना लिया था. ....... 'इत्यादि इत्यादि ....... Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034764
Book TitleBhagwan Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1925
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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