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________________ ४४९ भगवान् महावीर ही असली, स्वतन्त्र, सादा, बहुत मूल्यवान तथा ब्राह्मणों के मतों से भिन्न है तथा यह बौद्ध के समान नास्तिक नहीं है । (५) जर्मनी के डाक्टर जोहन्नेस हर्टल ता० १७-६-१९०८ के पत्र में कहते हैं कि मैं अपने देशवासियों को दिखाऊंगा कि कैसे उत्तम नियम और ऊँचे विचार जैन-धर्म और जैन आचार्यों में हैं । जैनो का साहित्य बौद्धों से बहुत बढ़ कर है और ज्यों २ मैं जैन-धर्म और उसके साहित्य को समझता हूँ त्यों २ मैं उनको अधिक पसन्द करता हूँ। जैन हितैषी भाग ५-अङ्क ५-६-७ में मि० जोहन्नेस हर्टल जर्मनो की चिठ्ठो का भाव छपा है उसमें से कुछ वाक्य उद्धृत । (१) जैन-धर्म में व्याप्यमान हुए सुदृढ़ नोति प्रामाणिकता के मूल तत्व, शील और सर्व प्राणियों पर प्रेम रखना इन गुणों की मैं बहुत प्रशंसा करता हूँ। जैन-पुस्तकों में जिस अहिंसा धर्म को शिक्षा दो है उसे मैं यथार्थ में श्लाघनीय समझता हूँ। (३) गरीब प्राणियों का दुःख कम करने के लिए जर्मनी में ऐसी बहुत सी संस्थाएँ अब निकली हैं (परन्तु जैन-धर्म यह कार्य हजारों वर्षों से करता है)। (४) ईसाई धर्म में कहा है कि "अपने प्यारे लोगों पर और अपने शत्रुओं पर भी प्यार करना चाहिये" परन्तु यूरोपसे ग्रह प्रेम का तत्व संपूर्ण जाति के प्राणियों की और विस्तृत नहीं हुआ। २६ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034764
Book TitleBhagwan Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1925
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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