SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 454
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवान् महावार ४४८ (६) ब्राह्मण धर्म जैन धर्म से मिलता हुआ है इस कारण टिक रहा है। बौद्ध धर्म जैन धर्म से विशेष अमिल होने के कारण हिन्दुस्थान से नाम शेष हो गया। (७ ) जैन धर्म तथा ब्राह्मण धर्म का पीछे से इतना निकट सम्बन्ध हुआ है कि ज्योतिष शास्त्री भास्कराचार्य ने अपने ग्रन्थ में ज्ञान दर्शन और चारित्र (जैन शास्त्र विहित रत्नत्रय धर्म) को धर्म के तत्व बतलाये हैं। केशरी पत्र १३ दिसम्बर सन् १९०४ में भी आपने जैन धर्म के विषय में यह सम्मति दी है। ग्रन्थों तथा समाजिक व्याख्यानों से जाना जाता है कि जैन धर्म अनादि है यह विषय निर्विवाद तथा मत भेद रहित है। सुतरां इस विषय में इतिहास के दृढ़ सबूत हैं और निदान ईस्वी सन से ५२६ बर्ष पहले का तो जैन धर्म सिद्ध है ही। महावीर स्वामी जैन धर्म को पुनः प्रकाश में लाए इस बात को आज २४०० वर्ष व्यतीत हो चुके हैं बौद्ध धर्म की स्थापना के पहले जैन धर्म फैल रहा था यह बात विश्वास करने योग्य है । चौबीस तीर्थकरों में महावीर स्वामी अन्तिम तीर्थकर थे, इससे भी जैन धर्म की प्राचीनता जानी जाती है। बौद्ध धर्म पीछे से हुआ यह बात निश्चित है। (४) पेरिस (फ्रांस की राजधानी) के डाक्टर ए. गिरनाट ने अपने पत्र ता० ३-१२-११ में लिखा है कि मनुष्यों की तरक्की के लिये जैन धर्म का चरित्र बहुत लाभकारी है यह धर्म बहुव Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034764
Book TitleBhagwan Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1925
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy