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________________ भगवान महावीर ४४० धर्म के लिये टण्टा मचानेवालों और धर्मपर अपना हक साबित करनेवालों को यह समझ रखना चाहिये कि धम किसी को मौरूसी जायदाद या सम्पत्ति नहीं है, यह तो वह विश्वव्यापी पदार्थ है जिसे प्रत्येक व्यक्ति धारण करके आत्म-कल्याण कर सकता है । धर्म का एक निश्चित स्वरूप आज तक दुनिया में कहीं आविष्कृत नहीं हुआ और न भविष्य में ही होने की आशा है। हमेशा अपेक्षाकृत दृष्टि ही से इसको लोग धारण करते आये हैं। यह कभी हो नहीं सकता कि सभी लोगों की मनोवृत्तियाँ एक सी हो जाय और सब एक निश्चित स्वरूप को अङ्गीकार कर लें। स्वयं भगवान महावीर के शिष्यों में भी यत्र तत्र यह मत-भेद पाया जाता था। मत-भेद का होना बुरा नहीं है प्रत्येक व्यक्ति को इस बात का प्राकृतिक अधिकार है कि वह अपने मतानुसार धर्माचरण करे, इस अधिकार पर आक्षेप करने का किसी को अधिकार नहीं। पर अपने मत के लिए इस प्रकार हठ और दुराग्रह करना कि नहीं मेरा ही मत सत्य है, इसी को भगवान् महावीर ने कहा है, यही सर्वज्ञ कथित है और इसी से मोक्ष मिल सकता है-सर्वथा अनुचित, घातक और समाज का नाशक है। दिगम्बरी यदि नग्नता को पसन्द करे और यदि वे नग्न-साधु एवं नग्न मूर्ति की उपासना करे तो ऐसा करने का उन्हें अधिकार है, अपने सिद्धान्तों के अनुसार धर्माचरण करने का उन्हें पूरा हक है, इसके लिये श्वेताम्बरियों का यह कहना कि नहीं, कपड़ा पहने बिना मुक्ति हो ही नहीं सकती, या दिगम्बरी मोक्ष के अधिकारी नहीं हो सेकते सर्वथा अनौचित्य पूर्ण है। इसी प्रकार यदि श्वेताम्बरी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034764
Book TitleBhagwan Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1925
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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