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________________ ४१७ भगवान् महावीर सुकाल और शान्ति का प्रार्दुभाव हुआ तब मथुरा में श्री स्कंदि. लाचार्य के सभापतित्व के अंतर्गत पुनः साधुओं की एक महा-सभा हुई । उसमें जिन २ को जो स्मरण था वह संग्रह किया गया। ___इस दुष्काल ने हमारे शास्त्रों को और भी ज्यादा धक्का पहुँचाया । उपरोक्त शास्त्रोद्धार शूरसेन देश की प्रधान नगरी मथुरा में होने के कारण उसमें शौरसेनी भाषा का बहुत मिश्रण हो गया। इसके अतिरिक्त कई भिन्न २ प्रकार के पाठान्तर भी इसमें बढ़ने लगे। ___ इन दो भयङ्कर विपत्तियों को पैदा करके ही प्रकृति का कोप शांत नहीं हो गया। उसने और भी अधिक निष्ठुरता के साथ वीर निर्वाण की दसवीं शताब्दी में इस दुर्भागे देश के ऊपर अपना चक्र चलाया। फिर भयङ्कर दुष्काल पड़ा और इस दफे तो कई बहुश्रुतों का अवसान होने के साथ २ पहिले के जीर्ण शीर्ण रहे हुए शास्त्र भी छिन्न भिन्न हो गये। उस स्थिति को बतलाते हुए 'सामाचारिशतक' नामक ग्रंथ में लिखा है कि, वीर सम्बत् ९८० में भयङ्कर दुष्काल के कारण कई साधुओं और बहुश्रुतों का विच्छेद हो गया तब श्री देवर्धिगणी क्षमाश्रमण ने शास्त्र-भक्ति से प्रेरित होकर भावी प्रजा के उपकार के लिये श्रीसंघ के आग्रह से बचे हुए सब साधुओं को वल्लभिपुर में इकट्ठे किये और उनके मुख से स्मरण रहे हुए थोड़े बहुत शुद्ध और अशुद्ध आगम के पाठों को सङ्गठित कर पुस्तकारूढ़ किये । इस प्रकार सूत्र-ग्रन्थों के मूलक" गणधर स्वामी के होने पर भी उनका पुनःसंकलन करने के कारण सब आगमों के कर्ता श्री देवर्धिगणिक्षमा श्रमण ही कहलाते हैं। २७ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034764
Book TitleBhagwan Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1925
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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