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________________ भगवान् महावीर एक साथ महा भीषण बारह दुष्काल पड़े। उस समय साधुओं का सङ्ग अपने निर्वाह के लिये समुद्र के समीपवर्ती प्रदेश में गया। वहाँ साधु लोग अपने निर्वाह की पीड़ा के कारण कण्ठस्थ रहे हुए शास्त्रों को गिन न सकते थे इस कारण वे शास्त्र भूलने लगे। इस कारण अन्न के दुष्काल का असर हमारे शास्त्रों पर भी पड़ा जिससे एक अकाल पीड़ित मानव की तरह शास्त्रों की भी गति हुई । जब यह भीषण दुष्काल मिट गया तब पाटलीपुत्र में सोर-सङ्ग की एक सभा हुई। उसमें जिस २ को जो जो स्मरण था वह इकट्ठा किया गया । ग्यारह अंगों का अनुसंधान तो हुआ पर "दृष्टिवाद" नामक बारहवाँ अङ्ग तो बिलकुल नष्ट हो गया। क्योंकि उस समय अकेले भद्रबाहु ही दृष्टिवाद के अभ्यासी थे। इससे मालूम होता है कि महावीर की दूसरी शताब्दि से ही शास्त्रों की भाषा एवं भावों में परिवर्तन होना प्रारम्भ हो गया। हमारे दुर्भाग्य से यह प्रारम्भ इतने ही पर न रुका बल्कि उत्तरोत्तर बढ़ता ही गया । प्रकृति के भीषण कोप से वीर निर्वाण की पांचवी और छठी शताव्दि में अर्थात् श्री स्कंदिलाचार्य और वज्रस्वामी के समय में उसी प्रकार के बारह भीषण दुष्काल इस देश पर और पड़े। इनका वर्णन इस प्रकार किया गया है। "बारह वर्ष का भीषण दुष्काल पड़ा, साधु अन्न के लिये भिन्न स्थानों पर बिखर गये जिससे श्रुतका ग्रहण, मनन, और चिन्तन न हो सका । नतीजा यह हुआ कि शात्रों को बहुत हानि पहुँची । जब प्रकृति का कोप शान्त हुआ, देश में Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034764
Book TitleBhagwan Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1925
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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