SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 418
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवान् महावीर ४१२ और उज्ज्वल बना कर नहीं रह गये, उन्होंने संसार को उस दिव्य-तत्त्व का उस उदार मत का सन्देश दिया जिसके अनुसार चलकर एक हीम से हीन व्यक्ति भी अपना कल्याण कर सकता है । मनुष्य जाति के सम्मुख उन्होंने ऐसे दिव्य और कल्याणकर मार्ग को रक्खा जिससे संसार में स्थायी शान्ति की स्थापना की जा सकती है। लेकिन आज यदि हम भगवान महावीर के अनुयायी जैन समाज की स्थिति को देखते हैं, यदि आज हम उसके द्वारा होने वाले कमों का अवलोकन करते हैं तो उसमें हमें एक भयङ्कर विपरीतता दृष्टि गोचर होती है। हाय, कहां तो भगवान महावीर का उन्नत, उदार और दिव्य उपदेश और कहां आधुनिक जैन समाज !! जिन महावीर का उपदेश आकाश से भी अधिक उदार और सागर से भी अधिक गम्भीर था उन्हीं का, अनुयायी जैन समाज आज कितनी सङ्कीर्णता के दल दल में फंस रहा है, जो "वर्द्धमान" अपने अलौकिक वीरत्त्व के कारण "महावीर" कहलाएँ उन्हीं महावोर की सन्तान आज परलेसिरे की कायर हो रही हैं, जिन महावीर ने प्रेम और मनुष्यत्व का उदार सन्देश मनुष्य जाति को दिया था उन्हीं की सन्तानें आज आपस में ही लड़ झगड़ कर दुनियाँ के परदे से अपने अस्तित्व को समेटने की तैयारियाँ कर रही हैं। कहां तो महावीर का वह दिव्य उपदेश. सम्वे पाणा विया उवा, सुहसाया, दुवख पडिकूला भाप्यियवहा । - पिय जीविणो, जीविकामा.सन्वेसि जीवियं पियं। . Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034764
Book TitleBhagwan Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1925
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy