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________________ भगवान् महावीर सायियों से घृणा करने लगे. फल इसका यह हुआ कि समाज में एक प्रकार की विशृंखला उत्पन्न हो गई। इस विशृंखलता को मिटा कर समाज में शान्ति और सुव्यवस्था रखने के उद्देश्य से हमारे पूर्वज ऋषियों ने वर्णाश्रमधर्म के समान सुन्दर विधान की रचना की थी। यह व्यवस्था इतनी सुन्दर और.सुसंगठित थी कि जहाँ तक समाज में यह अपने असली रूप से चलती रही वहाँ तक यहाँ का समाज संसार के सब समाजों में आदर्श बना रहा । इसका विधान इतना सुन्दर था कि यूरोप के प्रसिद्ध तत्त्ववेत्ता प्लेटो ने अपने "रिपब्लिक" नामक ग्रन्थ में और परिस्टोटल ने "पालिटिक्स" में इसी विधान का अनुकरण किया है। यदि विषयान्तर होने का डर न होता तो अवश्य हम पाठकों के मनोरंजनार्थ इस विधान का विस्तृत विवेचन यहाँ पर करते, पर यह विवे. चन इस स्थान पर अवश्य असङ्गत मालूम होगा इसलिये हम केवल उन बहुत ही मोटी बातों का वर्णन कर, जिसके बिना इस पुस्तक का क्रम नहीं जम सकता, इस विषय को समाप्त कर देंगे। वर्णाश्रम-धर्म का संक्षिप्त इतिहास वर्णाश्रम-धर्म की उत्पत्ति कैसे हुई, जब समाज के अन्तर्गत बहुत प्रयत्न करने पर भी शान्ति स्थिर न रह सकी तब हमारे पूर्वज ऋषियों ने उत्कट आत्म-बल के सहारे शान्ति प्रचार के उपाय की खोज करना प्रारम्भ की, उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि समाज में शान्ति बनाये रखने के लिये उसमें Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034764
Book TitleBhagwan Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1925
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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