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________________ ३८३ भगवान् महावीर "पतितं विस्मृतं नष्टं स्थितं स्थापित माहितम् । अदत्तं नाइदीतस्वं परकीयं वचित् सुधीः ॥" खाद डालना, ताला तोड़ना, जेबकटी करना, खोटे बाट, तोल रखना, कम देना, ज्यादा लेना आदि और ऐसी चोरी नहीं करना जो राज नियमों में अपराध बताई गई हो। किसी की रास्ते में पड़ी हुई चीज़ को उठा लेना, किसी के जमीन में गड़े हुए धन को निकाल लेना और किसी की धरोहर पचा लेनाइन बातों का इस व्रत में पूर्णतया त्याग करना चाहिये । स्थूल मैथुन विरमण-इस व्रत का अभिप्राय है, पर वो का त्याग करना, वैश्या, विधवा, और कुमारी की संगति से दूर रहना तथा जिस बात में जीवों का संहार होता हो, ऐसा पापमय व्यापार नहीं करना। ___ अनर्थ दंड विरमण-इसका अर्थ है बिना मतलब दंडित होने से-पाप द्वारा बंधने से बचना। व्यर्थ खराब ध्यान न करना, व्यर्थ पापोपदेश न देना और व्यर्थ दूसरों को हिंसक उपकरण न देना, इस व्रत का पालन है। इनके अतिरिक्त, खेल तमाशे देखना, गप्पें लड़ाना, हंसी दिल्लगी करना आदि प्रमादाचरण करने से यथाशक्ति बचते रहना भी इस व्रत में आ जाता है। ___सामायिक व्रत-राग द्वेष रहित शान्ति के साथ में दो घड़ो. यानी ४८ मिनिट तक आसन पर बैठने का नाम सामयिक है। इस समय में आत्मतत्व का चिन्तन, वैराग्यमय शास्त्रों का परि. शीलन अथवा परमात्मा का ध्यान करना चाहिये । देशावकाशिक व्रत-इसका अभिप्राय है छठे व्रत में ग्रहण Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034764
Book TitleBhagwan Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1925
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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