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________________ ३७३. भगवान महावीर आठ दृष्टियों में योग के आठ अंग जैसे-यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि क्रमशः सिद्ध किये जाते हैं । इस तरह आत्मोन्नति का व्यापार करते हुए जीव जब अन्तिम भूमि में पहुँचता है, तब उसका प्रावरण क्षीणः होता है और उसे केवल ज्ञान मिलता है। महात्मा पातञ्जलि ने योग के लिये लिखा है-“योगश्चित वृत्ति निरोधः" अर्थात् चित्त की वृतियों पर अधिकार रखना इधर उधर भटकती हुई वृत्तियों को आत्म-स्वरूप में जोड़ कर रखना इसको योग कहते हैं। इसके सिवा इस हद पर पहुँचने के लिये जो शभ व्यापार हैं वे भी योग के कारण होने से योग कह. लाते हैं। दुनिया में मुक्ति विषय के साथ सीधा सम्बन्ध रखने वाला एक अध्यात्म शास्त्र है। अध्यात्म शास्त्र का प्रतिपाद्य विषय है मुक्ति साधन का मार्ग दिखाना और उसमें आनेवाली बाधाओं को दूर करने का उपाय बताना । मोक्ष साधन के केवल दो उपाय हैं। प्रथम पूर्व संचित कर्मों का क्षय करना और द्वितीय, नवीन आनेवाले कर्मों को रोकना। इनमें प्रथम उपाय को 'निर्जरा' और द्वितीय उपाय को 'संवर' कहते हैं-इनका: वर्णन पहले किया जा चुका है । इन उपायों के सिद्ध करने के लिये शुद्ध विचार करना, हार्दिक भावनाएँ दृढ़ रखना, अध्यात्मिक तत्त्वों का पुनः पुनः परिशोलन करना और खराब संयोगों से दूर रहना यही अध्यात्मशास्त्र के उपदेश का रहस्य है । आत्मा में अनन्त शक्तियां है । आवरणों के हटने से प्रात्मा. की जो शक्तियां प्रकाश में आती हैं उनका वर्णन करना कठिन Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034764
Book TitleBhagwan Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1925
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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