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________________ मगवान महावीर ३७२ में फँस जाता है, तो उसका अधःपात हो जाता है, इसलिये ध्यानी मनुष्य को भी प्रतिक्षण इस बात के लिए सचेत रहना चाहिये कि वह कहीं मोह में न फंस जाय। ध्यान की उच्च अवस्था को 'समाधि' का नाम दिया गया है। समाधि से कर्म-व्यूह का क्षय होता है । केवलज्ञान का प्रकाश होता है । वेवल ज्ञानी जब तक शरीरी रहता है तब तक वह 'जीवन मुक्त कहलाता है, पश्चात् शरीर का सबन्ध छूट जाने पर • वह परब्रह्म स्वरूपी हो जाता है । आत्मा मूढ़ दृष्टि होता है तब 'बहिरात्मा' औरतत्त्वदृष्टि होने ' पर 'अन्तरात्मा' कहलाता है। सम्पूर्ण ज्ञानवान होने पर 'परमात्मा' ' कहलाता है। दूसरी तरह से कहें तो यों कह सकते हैं कि शरीर 'बहिरात्मा' है। शरीर सचैतन्य स्वरूप जीव 'अन्तरात्मा' है और अविद्यामुक्त परम शुद्धसच्चिदानन्द रूप बना हुआ जीव ही 'परमात्मा' है । जैन शास्त्रकारों ने आत्मा की आठ दृष्टियों का वर्णन किया है, उनके ये नाम हैं-मित्रा, तारा, बला, दीपता, स्थिरा, कान्ता, प्रभा और परा । इन दृष्टियों में आत्मा की उन्नति का क्रम है। 'प्रथम दृष्टि में जो बोध होता है-उसके प्रकाश को तृणाग्नि के उद्योत की उपमा दी गई है । उस बोध के अनुसार उस दृष्टि में सामान्यतया सद्वर्तन होता है। इस स्थिति में से जीव जैसे जैसे ज्ञान और वर्तन में आगे बढ़ता जाता है तैसे तैसे उसका . विकास होता है । ज्ञान और क्रिया की ये आठ भूमियां हैं। पूर्व भूमि की “अपेक्षा उत्तर भूमि में ज्ञान और क्रिया का प्रकर्ष होता है। इन Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034764
Book TitleBhagwan Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1925
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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