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________________ ३५७ भगवान् महावीर हैं जिनको हम क्रमशः अज्ञानमय और ज्ञानमय भूमिकाओं के नाम से पहिचान सकते हैं । अज्ञान की सात भूमिकाएँ ये हैं १. वीज जागृत', २. जागृत, ३. महाजागृत', ४. जागृत'स्वप्न ५. स्वप्न', ६. स्वप्न जागृत ७. सुषुप्तक, इसी प्रकार ज्ञान १. इस भूमिका में "अहंत्व मनत्व' बुद्धि की पूर्ण जागृति तो नहीं होती पर उसको जागृति के चिन्ह दृष्टि गोचर हो जाते हैं । इसी कारण इसका नाम बोज जागृत रक्खा गया है। यह भूमिका बनस्पति के समान क्षुद्र जीवों में भी मानी जाती है । २. इस भूमिका में "अहंत्व ममत्व' बुद्धि अल्पांश में जागृत हो जाता है, इसी कारण इसका नाम जागृत रक्खा गया है। यह भूमिका कोट पतंग और पशुओं में भी मानी जाती है । ३. इस भूमिका में "अहंत्व ममत्व' को बुद्धि और भी पुष्ट होतो है, इससे यह महा जागृत कहलाती है । यह भूमिका मनुष्य और देवताओं में पाई जाती है । ४. चौथी भूमिका में “जागृत अवस्था" के भ्रम का समावेश हो जाता है । जैसे एक ही जगह दो चन्द्रमा दिखाई देना इत्यादि इससे इस भूमिका का नाम "जागृत स्वप्न' रक्खा गया है। ___५. इस भूमिका में निद्रित अवस्था में आये हुए स्वप्न का चैतन्य अवस्था में जो अनुभव होता है उसका समावेश रहता है। इसलिए यह "स्वप्न" नाम से पुकारी जाती है । ६. इस भूमिका में कई वर्षों तक चालू रहने वाले स्वप्न का समावेश रहता है । यह स्वप्न शरीर पात होने पर भी चालू रहता है। इससे यह स्वप्न जागृत कहलाती है। ७. यह भूमिका गाढ़ निद्रा की होती है। इसमें "जड़" के समान स्थिति हो जाती है। केवल मात्र कर्म वासना रूप में रहते हैं; इसी से यह सुषुप्ति कहलाती है । इनमें से ७ तक को भूमिकाएं स्पष्ट रूप से मनुष्यों के अनुभव में आती है। (योग वशिष्ट उत्पत्ति प्रकरण ११७) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034764
Book TitleBhagwan Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1925
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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