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________________ ३४७ भगवान महावीर •ए अगर वे मिल जाते हैं तो उसे सुख का भास होता है, और उन पदार्थों पर अधिकार करके वह मान करता है, फिर उनको रखने या और इकट्ठे करने के लिए माया करता है। अगर कोई उनको उससे ले ले या उनके सङ्ग्रह करने में बाधा डाले या उसके मान की हानि करे तो वह क्रोध करता है; ये क्रियायें मानसिक भी होती हैं। ___ इस तरह कर्मों का आगमन होता है। परन्तु कर्म जीव पर तभी प्रबल होते हैं जब जीव इच्छा के वश में, दीनता की दशा में, अपने स्वाभाविक शुद्धोपयोग रूप निज बल को छोड़ कर निर्बल होता है। ऐसे पुद्गल के अति सूक्ष्म परमाणु जीव के भावों और क्रियाओं के निमित्त से उसके बन्धन होते हैं। इन कर्मवर्गों में बन्धन के चार विशेषण होते हैं, एक प्रकृति-बन्धन (Quality of Karmic matter ) जिसके अनुसार कर्मवर्गों में भिन्न भिन्न प्रकार की शक्तियाँ होती हैं, दूसरे प्रदेश-बन्धन ( Extent of Kramic matter ) जिसके अनुसार आत्म-प्रदेशों से कर्म प्रदेशों का सम्बन्ध होता है, तीसरे स्थिति-बन्धन (Duration of Karmic matter ) जिसके अनुसार कर्मवर्गों की सत्ता या उदयकाल का प्रमाण होता है, और चौथे अनुभाग-बन्धन (Quantity of Intensity of Karmic matter ) जिसके अनुसार कर्मवर्गों में फलदायक शक्ति होती है। प्रकृति और प्रदेश-बन्धन योगों के अनुसार होते हैं और स्थिति और अनुभाग-बन्धन कषायों के अनुसार। जीव के भावों की हालत योगों और कषायों का जैसा फल हो वैसी होती है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034764
Book TitleBhagwan Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1925
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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