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________________ ३३७ भगवान् महावार का भेद और अभेद बतानेवाले सिद्धान्त यदि एक दूसरे पर आक्षेप करने को उतारु हों तो वे अमान्य ठहरते हैं। ___ यह समझ रखना चाहिये कि नय आंशिक सत्य है, आंशिक सत्य सम्पूर्ण सत्य नहीं माना जा सकता है। आत्मा को अनित्य या घट को नित्य मानना सर्वाश में सत्य नहीं हो सकता है । जो सत्य जितने अंशों में हो उसको उसने ही अंशों में मानना युक्त है। इसकी गिनती नहीं हो सकती है कि वस्तुतः नय कितने हैं। अभिप्राय, या वचन प्रयोग जब गणना से बाहर हैं तब नय जो उनसे जुदा नहीं हैं कैसे गणना के अन्दर हो सकते हैं। यानी नयों की भी गिनती नहीं हो सकती है। ऐसा होने पर भी नयों के मुख्यतया दो भेद बताये गये हैं। द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक । मूल पदार्थ को 'द्रव्य' कहते हैं, जैसे-घड़े की मिट्टी। मूल द्रव्य के परिणाम को पर्याय कहते हैं। मिट्टी अथवा अन्य किसी द्रव्य में जो परिवर्तन होता है वह सब पर्याय है। द्रव्यार्थिक का मतलब है, मूल पदार्थों पर लक्ष्य देने वाला अभिप्राय और 'पर्यार्थिक नय' का मतलब है, पर्यायों पर लक्ष्य करनेवाला अभिप्राय । द्रव्यार्थिक नय सब पदार्थों को नित्य मानता है। जैसे-घड़ा, मूलद्रव्य मृतिका रूप से नित्य है। पर्यायार्थिक नय सब पदार्थों को अनित्य मानता है। जैसे स्वर्ण की माला, जंजीर कड़े अंगूठी आदि पदार्थों में परिवर्तन होता रहता है। इस अनित्यत्व को परिवर्तन होने जितना ही समझना चाहिये, क्योंकि सर्वथा नाश या सर्वथा अपूर्व उत्पाद किसो वस्तु का कभी नहीं होता है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034764
Book TitleBhagwan Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1925
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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