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________________ ३३५ भगवान् महावीर विचित्र तरह से होता है। कारण आत्मा किसी समय पशु अवस्था में होती है, किसी समय मनुष्य स्थिति प्राप्त करती है कभी दैवगति की भोक्ता बनती है और कभी नरकादि दुर्गतियों में जाकर गिरती है । यह कितना परिवर्तन है ? एक ही आत्मा की यह कैसी विलक्षण अवस्था है ! यह क्या बताती है ? आत्मा की परिवर्तन शीलता ! एक शरीर के परिवर्तन से भी यह समझ में आ सकता है कि आत्मा परिवर्तन की घटमाल में फिरती रहती है, ऐसी स्थिति में यह नहीं माना जा सकता है कि आत्मा सर्वथा एकान्त नित्य है। अतएव यह माना जा सकता है कि आत्मा न एकान्त नित्य है, न एकान्त अनित्य है बल्कि नित्यानित्य है। इस दशा में आत्मा जिस दृष्टि से नित्य है वह, और जिस दृष्टि से अनित्य है, वह दोनों ही दृष्टियां “नय" कहलाती हैं। ____ यह बात सुस्पष्ट और निस्सन्देह है कि आत्मा शरीर से जुदी है । तो भी यह ध्यान में रखना चाहिये कि आत्मा शरीर में ऐसे ही व्याप्त हो रही है, जैसे कि मक्खन में घृत । इसी से शरीर के किसी भी भाग में जब चोट पहुँचती है, तब तत्काल ही आत्मा को वेदना होने लगती है। शरीर और आत्मा के ऐसे प्रगाढ सम्बन्ध को लेकर जैन शास्त्रकार कहते हैं कि यद्यपि आत्मा शरीर से वस्तुतः भिन्न है तथापि सर्वथा नहीं। यदि सर्वथा भिन्न मानेंगे तो आत्मा को शरीर पर आधात लगने से कुछ कष्ट नहीं होगा, जैसे कि एक आदमी को आघात पहुँचाने से दूसरे आदमी को कष्ट नहीं होता है । परन्तु आबाल वृद्ध का यह अनुभव है कि शरीर पर आघात होने से आत्मा को उसकी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034764
Book TitleBhagwan Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1925
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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