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________________ ३१९ भगवान् महावीर • पर यदि उस घड़े को फोड़ कर हम उसी मिट्टी का बनाया हुआ कोई दूसरा पदार्थ किसी को दिखलावें तो वह कदापि उसको घड़ा नहीं कहेगा। उसी मिट्टो और द्रव्य के होते हुए भी उसको घड़ा न कहने का कारण यह है कि उसका आकार उस घड़े का सा नहीं है । इससे सिद्ध होता है कि घड़ा मिट्टी का एक आकार विशेष है। मगर यह बात ध्यान में रखना चाहिये कि आकार विशेष मिट्टी से सर्वथा भिन्न नहीं हो सकता, आकार परिवर्तित की हुई मिट्टी ही जब हड़ा, सिकोरा, मटका आदि नामों से सम्बोधित होती है, तो ऐसी स्थिति में ये आकार मिट्टी से सर्वथा भिन्न नहीं कहे जा सकते। इससे साफ जाहिर है कि घड़े का आकार और मिट्टी ये दोनों घड़े के स्वरूप हैं। अब देखना यह है कि इन दोनों रूपों में विनाशी रूप कौन सा है और ध्रुव कौन सा ? यह प्रत्यक्ष दृष्टिगोचर होता है कि घड़े का आकार स्वरूप विनाशी है । क्योंकि घड़ा फूट जाता है-उसका रूप नष्ट हो जाता है । पर घड़े का जो दूसरा स्वरूप मिट्टी है वह अविनाशी है क्योंकि उसका नाश होता ही नहीं, उसके कई पदार्थ बनते और बिगड़ते रहते हैं। ___इतने विवेचन से हम इस बात को स्पष्ट समझ सकते हैं कि घड़े का एक स्वरूप विनाशी है और दूसरा ध्रुव । इसी बात. को यदि हम यों कहें कि विनाशी रूप से घड़ा अनित्य है, और ध्रुव रूप से नित्य है तो कोई अनुचित न होगा, इसी तरह एक ही वस्तु में नित्यता और अनित्यता सिद्ध करनेवाले सिद्धान्त हो को स्याद्वाद कहते हैं। स्याद्वाद की सीमा केवल नित्य और अनित्य इन्हीं दो बातों Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034764
Book TitleBhagwan Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1925
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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