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________________ २८५ भगवान् महावीर ध्यान की चौथी स्थिति में एरण्ड के बीज के समान कर्म बन्ध रहित हो ऋजुगति के साथ उर्ध्वगमन कर प्रभु मोक्ष को गये। उस समय उन नारकियों को भी-जिन को कि एक निमेष का सुख भी दुर्लभ है-एक क्षण के लिये सुख प्राप्त हुआ । प्रभु के निर्वाण को जान उस समय के सब राजाओं ने द्रव्य-दीपकों की रोशनी की। प्रभु के निर्वाण पर देवताओं ने भी निर्वाणोत्सव मनाया, तभी से लोक में दीपावलि पर्वका प्रारम्भ हुआ। जिस समय प्रभु का निर्वाण हुआ उस समय चतुर्थ काल में तीन मास और साढ़े सात दिन शेष थे। ___ इधर देवशर्मा ब्राह्मण को प्रतिबोध दे गौतम स्वामी वापस लौटे, मार्ग ही में प्रभु के निर्वाण का संवाद सुन वे बड़े दुखी हुए । इसी समय प्रभु के प्रति रहा हुआ उनकी ममता का भाव टूट गया, उसके टूटते ही इन्हें कैवल्य की प्राप्ति हो गई। पश्चात् बारह वर्ष तक भ्रमण कर अनेक भव्यजनों को राह पर लगा कर वे मोक्ष को गये । उनके पश्चात् पाँचवें गणधर सुधर्माचार्य कितने ही समय तक भ्रमण करते रहे, पश्चात् अन्तिम केवली श्रीजम्बूस्वामी को संब का भार दे वे भी निर्वाण को प्राप्त हुए। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034764
Book TitleBhagwan Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1925
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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