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________________ २८३ भगवान महावीर मोक्ष है और उसका मूल कारण धर्म है। वह धर्म संयम वगैरह दस प्रकार का है। यह धर्म संसार सागर से पार लगाने वाला है। अनन्त दुख रूप संसार है, और अनन्त सुख रूप मोक्ष है। संसार के त्याग का और मोक्ष प्राप्ति का मुख्य हेतु धर्म के सिवाय दूसरा कोई नहीं। लङ्गड़ा मनुष्य भी जिस प्रकार बाहन के आश्रय से पार हो सकता है उसी प्रकार धनकर्मी भी धर्म के आश्रय से मोक्ष पा सकता है।" इस प्रकार देशना देकर प्रभु स्थिर हुए, तत्पश्चात् अपापा के राजा हस्तिपाल ने अपने आठ स्वप्नों का फल प्रभु से पूछा, जिसका अलग अलग उत्तर प्रभु ने दिया। उसके पश्चात् गौतम स्वामी के पूछने पर उन्होंने अवसर्पिणी काल के पाँचवें और छठे काल की स्थिति बतलाई । जिसका विस्तृत वर्णन करना यहां आवश्यक नहीं जान पड़ता। __उसी दिन की रात्रि को अपना मोक्ष जान प्रभु ने विचार किया कि-"गौतम का मुझ पर बहुत स्नेह है और वही उस की कैवल्योत्पत्ति में बाधा देता है। इस कारण उस स्नेह का उच्छेद करना आवश्यक है।" यह सोच उन्होंने गौतमसे कहा"गौतम ! इस समीपवर्ती ग्राम में देवशर्मा नामक एक ब्राह्मण है, वह तुम से प्रतिबोध पावेगा, इसलिये तुम वहाँ जाओ।" प्रभु की आज्ञा मस्तक पर धारण कर गौतम वहाँ गये और उन्होंने उस ब्राह्मण को उपदेश देकर राह पर लगाया। इधर कार्तिक मास की अमावस्या को पिछली रात्रि के समय स्वाति नक्षत्र के चन्द्रमा में श्री वीर प्रभु ने पचपन अध्ययन पुण्य फल विपाक सम्बन्धी और उतने ही पाप फल विपाक सम्बन्धी कहे। उसके Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034764
Book TitleBhagwan Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1925
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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