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________________ २८१ भगवान् महावीर विरुद्ध वर्णों का योग एक स्थान पर दिखलाई देता है । "विज्ञान का एक आकार विविध आकारों के संयोग से उत्पन्न हुआ है" इस प्रकार मानने वाला बौद्ध -दर्शन अनेकान्तदर्शन का खण्डन नहीं कर सकता । पृथ्वी को परमाणु स्वरूप से नित्य और स्थूल रूप से अनित्य मानने वाला तथा द्रव्यत्व, पृथ्वीत्व आदि गुणों को सामान्य और विशेष रूप से स्वीकार करने वाला वैशेषिक दर्शन भी उसका खण्डन नहीं कर सकता । इसी प्रकार सत्व, रज, तम, आदि विरुद्ध गुणों से आत्मा को गुंथी हुई मानने वाला सांख्य-दर्शन भी इसका खण्डन नहीं कर सकता । इसके अतिरिक्त चार्वाक का खण्डन और मण्डन देखने की तो. आवश्यकता ही नहीं है। क्योंकि उसकी बुद्धि तो परलोक, आत्मा और मोक्ष के सम्बन्ध में मूढ़ हो गई है । इससे हे स्वामी ! उत्पाद, व्यय ओर ध्रौव्य के अनुसार सिद्ध को हुई वस्तु में ही वस्तुत्व रह सकता है, आप का यह कथन बिल्कुल मान्य है।" अभय कुमार के दीक्षा लिए पश्चात श्रेणिकपुत्र कुणिक ने षड्यन्त्र करके श्रोणिक को जेल में डाल दिया और स्वयं राजा बन बैठा । अत्यन्त कष्टों से त्रसित हो श्रेणिक ने एक दिन आत्म-हत्या करली। तदनन्तर कुछ समय पश्चात कुणिक का वैशालीपति चेटक के साथ बड़ा ही भयङ्कर युद्ध हुआ। जिसमें कुछ दिनों तक तो चेटक की विजय होती रही। पर अन्त में कुणिक ने उनको पराजित कर वैशालो की दुर्गति करदी। तत्प. श्वात दिग्विजय करने की आशा से कुणिक सेना सहित निकला। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034764
Book TitleBhagwan Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1925
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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