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भगवान् महावीर
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वासवदत्ता के साथ बहुत समय तक विलास कर एक दिन उदयनने संसार से विरक्त हो वीर प्रभु के पास से दीक्षा ग्रहण कर ली।
____एक दिन “अभय कुमार" ने अपने पिता श्रेणिक राजा से दीक्षा लेने की आज्ञा मांगो। इससे श्रेणिक बड़े दुखी हुए क्योंकि वे अभय कुमार को अपना उत्तराधिकारी बनाना चाहते थे । पर बुद्धिमान अभय कुमार ने उनको कई प्रकार से समझा बुझा कर शान्त किया और दीक्षा लेने की आज्ञा ले लो। तदन्तर वीर प्रभु के पास जाकर उन्होंने दीक्षा ग्रहण कर ली । दोक्षा लेने के पूर्व उन्होंने वीर प्रभु की बड़ो हो तत्त्वपूर्ण स्तुति की थी। उसका सार हम नीचे देते हैं। ___ "हे स्वामी ! यदि जीव को हम एकान्त-नित्य-मानें तो कृत नाश और अकृतागम का दोष आता है। इसी प्रकार यदि जीव को एकान्त-अनित्य मानें तो भी पराक्त दोनों दोष आते हैं । यदि आत्मा को एकान्त-अनित्य मानें तो सुख और दुख का भोग नहीं रह जाता । पुण्य और पाप एवं बन्ध तथा मोक्ष जीव को एकान्त नित्य-और एकान्त अनित्य मानने वाले दर्शन में कभी सम्भव नहीं हो सकते । इससे हे भगवन् ! तुम्हारे कथनानुसार वस्तु का नित्यानित्य स्वरूप ही सब दृष्टियों से ठीक
और दोष रहित हैं । गुड़ कफ को उत्पन्न करता है और सोंठ पित्त को पैदा करती है। पर यदि ये दोनों औषधियाँ मिश्रित हो तो कुछ दोष उत्पन्न नहीं हो सकता। असत् प्रमाण की प्रसिद्धि के लिये "दो विरुद्ध भाव एक स्थान पर नहीं हो
सकते" यह कहना मिथ्या है। क्योंकि चितकबरी वस्तु में Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com